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Apr 14, 2020

Bihar Kesari Dr Krishna Singh Freedom Fighter Chief Minister of Bihar

बिहार केसरी डॉक्टर कृष्ण सिंह, स्वंतत्रता सेनानी एवं बिहार के प्रथम मुख्य मंत्री 


बिहार केसरी डा० श्रीकृष्ण सिंह

लाल भभुका चेहरा, विशाल वक्षस्थल, उन्नत ललाट पर रोली, माथे पर गाँधी टोपी, मस्त कुंजर की चाल, हिमालय की बुलन्दी, सागर की गहराई, कुछ में -कर गुजरने की तमन्ना लिए एक दैवी शक्ति के संस्कार से संपृक्त, एक हाथ -दर्शन का महान ग्रन्थ गीता और दूसरे हाथ में कृपाण । भगवान परशुराम की वंश-परम्परा, मुँह में चारो वेद, पीठ पर तीर भरे तरकस के सिद्धांत से आंकल लिप्त नवजवान मुंगेर के कष्टहरिनी घाट पर अंग्रेजों को भगाने और भारत को स्वतन्त्र कराने का संकल्प लेनेवाला यह कौन है ? भीड़ में कौतुहल है । उसके · साथ कुछ वकील हैं, किसी ने परिचय देते हुए कहा कि माऊर, बरबीघा. मुंगेर निवासी बाबू हरिहर प्र० सिंह के लड़के श्रीकृष्ण सिंह वकील हैं । किसे पता था कि आगे चलकर वही नोवजवान बिहार का निर्माता, राज्य का भाग्य विधाता और चलीस वर्षों तक बिहार की नस-नाड़ियों का संचालक, कर्ता-धर्ता विहार केसरी डा० श्रीकृष्ण सिंह बनेगा ।

डा० श्रीकृष्ण सिंह का जन्म २९ अक्टबर १८८५ को कार्तिक शुक्ल पक्ष "पंचमी के दिन हुआ था। बे पढ़ने में बड़े प्रतिभाशाली थे । एम०ए०, बी०एल० "करने के बाद उन्होंने १ अप्रील १९१५ को मुंगेर वकालत खाने में नये वकील के रूप में पदार्पण किये । वकालत के अतिरिक्त वे अपना पूरा समय किसान -आन्दोलन में लगाने लगे । खुदीराम बोस की सहादत, भगवान तिलक का "स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है" का नारा उन्हें अनुप्रेरित कर रहा था । न्न दिन में खाने की चिंता न रात में सोने का गम । देश कैसे आजाद हो, गरीबी कैसे मिटे, किसान कैसे खुशहाल हों, इसी ताने-वाने में लगा श्रीकृष्ण, भारत प्रोपदी का चीरहरण दुष्ट दुयोंधन अंग्रेज शासक न करने पावे, इसके लिए सतत् जागृत, सदैव सतर्क, सर्वस्व न्योछावर की भावना से तत्पर ।

लोकमान्य तिलक ने होम रूल आन्दोलन प्रारम्भ किया। बिहार में २९ अगस्त १९२१ से वे गाँव- गाव श्री कृष्ण सिंह पूरा बही कार्यकर्त्ता वन गये । घूमकर असहयोग आन्दोलन के लिए अलख जगाने लगे । वे उतने ओजस्वी वक्ता थे कि उनके भाषण के बाद मूर्दों में भी जान आ जाती थी । जहाँ कहीं भी इनके 'भाषण का कार्यक्रम रहता, रामलीला, रासलीला की तरह आसपास के गाँवों से जनसमुद्र उमड़ पड़ता था। उनके भाषण के बाद इलाके का तेवर ही बदल जाता था। सरकारी स्कूल, कॉलेज, कार्यालय वीरान पड़ने लगे। की वंशी पर व्रज के वासी सुध-बुध खोकर नाचने लगे खड़गपुर में किसान उसमें इनका सिंह गर्जन सुनकर उसी सभा में इन्हें बिहार केसरी की पदवी मिली जबतक इतका भाषण चला श्रोता किसानों की दुर्दशा का वर्णन सुनकर रोते रहे। जब इन्होंने जन चेतना का

शंखनाद फूका सारा बाता- वरण इनक्लाव के गगनभेदी नारे से गर्म हो उठा। अब बिहार केसरी अंग्रेज
की नजर में बिहार के सबसे खतरनाक व्यक्ति हो गये। मुहम्मद जुफेर और अन्यों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। प्रथम बार श्रीबाबू को एक वर्ष का सश्रम कारावास मिला। वे १९२३ में रिहा किये गये ।


१९२७ में श्रीबाबू बिहार विधान परिषद् के लिए निर्वाचित बे उसी वर्ष सर्वसम्मत विपक्ष के नेता चुने गये। विपक्ष के नेता के रूप में सदन में अपने भाषणों और बाहर में अपने कृत्यों से उन्होंने इतनी ख्याति अर्जित कर ली कि वे देश के गिने-चुने नेताओं में पाक्तय हो गये ।
कांग्रेस कार्यसमिति के निर्णय के अनुसार डा० श्रीकृष्ण सिंह ने १९२९ में बिहार विधान परिषद् की सदस्यता तथा नेता विपक्ष के पद से त्यागपत्र दे दिया।
बापू के आन्दोलन का दूसरा दौर चला। राष्ट्र पिता की मान्यता थी कि नमक देश के जन-जन को अमीर-गरीब सबको जोड़ने वाला रामरस है इस पर कर नहीं लगना चाहिए। विरोध में उन्होंने नमक बनाने का आदेश दे दिया जो देश में नमक सत्याग्रह के नाम से चला मुंगेर जिले (अब बेगुसराय) के गढ़पुरा गाँव में नमक सत्याग्रह के डिक्टेटर श्रीबाबू थे वे नमक बना रहे थे। पानी वाप्य तेजी से निकल रहे थे, कड़ाही लाल थी, उसकी में पुलिस ने सत्याग्रह स्थल
खल दल खोल रहा था,
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बंडी एकदम गर्म इतने को घेर लिया। डंडे बरसने लगे। पुलिस ने कड़ाही उलटने का प्रयास किया। श्रीबाबू ने दोनों हाथ से कड़ाही पकड़कर उसे छाती से सटा लिया। हाय छाती आग से जल रहे थे और सिर पर पैर पर देह पर तड़ातड़ पुलिस की लाठियां पढ़ रही थी। उनका सर फट गया। कपड़े रक्त से लाल हो गये, मगर कड़ाही की दोनों मुट्ठी हाथ में शरीर कड़ाह पर उन्हें पकड़कर पुलिस गाड़ी पर लाद दिया गया। भीड़ हटने का नाम नहीं, श्रीबाबू के अपील पर भीड़ हटी मुकदमा चला। श्रीबाबू को तुरत सजा दे दी गई। पहले भागलपुर, फिर हजारीबाग जेल में बन्द रहे छः महीने बाद उन्हें अक्टूबर को रिहा किया क्या ११ नवम्बर १९३० को



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