बिहार केसरी डा० श्रीकृष्ण सिंह
लाल भभुका चेहरा, विशाल वक्षस्थल, उन्नत ललाट पर रोली, माथे पर गाँधी टोपी, मस्त कुंजर की चाल, हिमालय की बुलन्दी, सागर की गहराई, कुछ में -कर गुजरने की तमन्ना लिए एक दैवी शक्ति के संस्कार से संपृक्त, एक हाथ -दर्शन का महान ग्रन्थ गीता और दूसरे हाथ में कृपाण । भगवान परशुराम की वंश-परम्परा, मुँह में चारो वेद, पीठ पर तीर भरे तरकस के सिद्धांत से आंकल लिप्त नवजवान मुंगेर के कष्टहरिनी घाट पर अंग्रेजों को भगाने और भारत को स्वतन्त्र कराने का संकल्प लेनेवाला यह कौन है ? भीड़ में कौतुहल है । उसके · साथ कुछ वकील हैं, किसी ने परिचय देते हुए कहा कि माऊर, बरबीघा. मुंगेर निवासी बाबू हरिहर प्र० सिंह के लड़के श्रीकृष्ण सिंह वकील हैं । किसे पता था कि आगे चलकर वही नोवजवान बिहार का निर्माता, राज्य का भाग्य विधाता और चलीस वर्षों तक बिहार की नस-नाड़ियों का संचालक, कर्ता-धर्ता विहार केसरी डा० श्रीकृष्ण सिंह बनेगा ।
डा० श्रीकृष्ण सिंह का जन्म २९ अक्टबर १८८५ को कार्तिक शुक्ल पक्ष "पंचमी के दिन हुआ था। बे पढ़ने में बड़े प्रतिभाशाली थे । एम०ए०, बी०एल० "करने के बाद उन्होंने १ अप्रील १९१५ को मुंगेर वकालत खाने में नये वकील के रूप में पदार्पण किये । वकालत के अतिरिक्त वे अपना पूरा समय किसान -आन्दोलन में लगाने लगे । खुदीराम बोस की सहादत, भगवान तिलक का "स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है" का नारा उन्हें अनुप्रेरित कर रहा था । न्न दिन में खाने की चिंता न रात में सोने का गम । देश कैसे आजाद हो, गरीबी कैसे मिटे, किसान कैसे खुशहाल हों, इसी ताने-वाने में लगा श्रीकृष्ण, भारत प्रोपदी का चीरहरण दुष्ट दुयोंधन अंग्रेज शासक न करने पावे, इसके लिए सतत् जागृत, सदैव सतर्क, सर्वस्व न्योछावर की भावना से तत्पर ।
लोकमान्य तिलक ने होम रूल आन्दोलन प्रारम्भ किया। बिहार में २९ अगस्त १९२१ से वे गाँव- गाव श्री कृष्ण सिंह पूरा बही कार्यकर्त्ता वन गये । घूमकर असहयोग आन्दोलन के लिए अलख जगाने लगे । वे उतने ओजस्वी वक्ता थे कि उनके भाषण के बाद मूर्दों में भी जान आ जाती थी । जहाँ कहीं भी इनके 'भाषण का कार्यक्रम रहता, रामलीला, रासलीला की तरह आसपास के गाँवों से जनसमुद्र उमड़ पड़ता था। उनके भाषण के बाद इलाके का तेवर ही बदल जाता था। सरकारी स्कूल, कॉलेज, कार्यालय वीरान पड़ने लगे। की वंशी पर व्रज के वासी सुध-बुध खोकर नाचने लगे खड़गपुर में किसान उसमें इनका सिंह गर्जन सुनकर उसी सभा में इन्हें बिहार केसरी की पदवी मिली जबतक इतका भाषण चला श्रोता किसानों की दुर्दशा का वर्णन सुनकर रोते रहे। जब इन्होंने जन चेतना का
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