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Dec 2, 2017

Do not be Afraid of Dark Dear


अँधेरे से मत डरना प्यारे!


अँधेरे से मत डरना प्यारे! अँधेरे से मत डरना

पृथ्वी भी तो आराम करेगा अपना दिन पूरा करके

सूरज दिनभर तेज धूप बिखरा कर जाएगा

रात को चन्दा शांत रोशनी से जग को नहलाएगा

तारे टिम टिम करते रहते सुबह सांझ सबेरे

 

अँधेरे को दोस्त बना लो, कभी नहीं डरने का

अपनी सोच को खूब फैलाओ दोस्तों संग मिलकर

सारी बाधाएं दूर हटेगी दिन के आ जाने से

रात अँधेरे में जग रहता शांत! बिलकुल शांत!


अँधेरे से मत डरना प्यारे! अँधेरे से मत डरना



Nov 30, 2017

Life of Metro City and Village गाँव और शहर का जीवन

इस पोस्ट में गाँव और शहर के बीच के मौलिक अंतर को समझने का प्रयास करते हैं. हो सकता है कि मेरे विचार से कई बार आप सहमत न हों. गाँव में एक सरलता और सादगी दिखती है.

गाँव में लोगों का जीवन शांत और स्थिर प्रतीत होता है. लोग आपस में बात करते हैं, एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होते हैं. हालांकि इसमें भी बदलाव होना शुरू हो गया है. टी. वी. आज गाँव में भी हर घर में पहुँच चुका है और दादा दादी और नाना नानी का स्थान ये उपकरण लेते जा रहे हैं. बाबजूद इसके लोगों में एक अपनापन दीखता है. हालांकि गाँव में भी लोगों के पास पैसे आ गए हैं. लोग दिखावा करने लगे हैं. यदि पहले की बात करें तो गाँव के सबसे अमीर व्यक्ति और सामान्य व्यक्ति के बच्चों के कपडे और रहन सहन में कोई खास फर्क नहीं होता था लेकिन अब थोडा थोडा दीखने लगा है.



दूसरी तरफ शहर में लोग भागते नजर आते हैं मानो उनमें कोई रेस चल रहा हो. लोगों के पास खाने और नाश्ता करने का समय नहीं है. लोग कार में बैठे बैठे नाश्ता कर रहे होते हैं. शहरों में गाड़ियों की बढ़ती संख्या इस बात का सबूत है कि उनके पास कितना पैसा है और उनकी दैनिक गति कितनी तेज है. लोगों में कोई अपनापन नहीं. सब पैसे कमाने के अंधे दौड़ में शामिल हैं.

सड़क पर कोई गिरा पड़ा मिल जाय तो लोग गाडी रोककर देख लेते हैं और चलते बनते हैं. कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कितने हृदयहीन लोग रहते हैं शहरों में. यह बात सही है कि बड़े शहर लोगों को रोजगार देते हैं और शायद इसी कारण से लोग भागे भागे शहर आ जाते है. लोगों की भी मजबूरी है.

यदि गाँव में ही रोजगार उपलब्ध हो जाए तो यह पलायन रुक सकता है. लेकिन इसके लिए सरकारों को ऐसा वातावरण बनाना होगा. इस पोस्ट पर आप अपने अनुभव भी शेयर करें. आपका सदैव स्वागत है.

Jul 21, 2017

Gram Panchayat Raj Nayanagar Dularpur Raatgaon Aadharpur

ग्राम पंचायत राज नयानगर, दुलारपुर, रातगाँव, आधारपुर मुखिया और सरपंच सूची 

दुलारपुर- आधारपुर पंचायत 

1. रामफल सिंह                निर्विरोध        मुखिया १९५२ 
    देवनारायण सिंह      मनोनीत       सरपंच १९५२ 

2.  देवनारायण सिंह     -     मुखिया १९५७ 
    उपेन्द्र कुंवर                 -             सरपंच   १९५७ 

3. देवनारायण सिंह     -    मुखिया         १९६२
      उपेन्द्र कुंवर        -   सरपंच      १९६२

4. रामचंद्र कुंवर       - मुखिया         १९७१
    राजेंद्र प्रसाद सिंह     - सरपंच         १९७१ (बाद में विधायक बने)

५. रामचंद्र कुंवर           -       मुखिया १९७९
   भूपेंद्र बिहारी मिश्र         - सरपंच १९७९ 

नयानगर (दुलारपुर) पंचायत 


1.  राजेंद्र प्रसाद सिंह   -          मुखिया   १९७९ (बाद में विधायक बने)
      बबन सिंह      -                  सरपंच १९७९  

रातगाँव पंचायत 

1. सुनील कुमार सिंह भुल्लू -          मुखिया          २००१ 

2. रीता देवी         -            मुखिया          २००६ 
    रंजीत कुमार सिंह    -            सरपंच         २००६ 

3. रीता देवी         -            मुखिया         २०११  
राकेश चौधरी (महंथ)  -           सरपंच           २०११ 

4. सुमन कुमारी        -           मुखिया           २०१६ 
   इंदु देवी               -           सरपंच          २०१६   

Mar 18, 2017

Space Walk Dream #ColgateMagicalStories

स्पेस या अन्तरिक्ष के किस्से हमेशा से लोकप्रिय और मनोरंजक होते हैं. जब से टीवी में बच्चों के लिए तरह -तरह के सीरियल आदि आने लगे हैं, तब से बच्चों की कल्पना की उड़ान नयी- नयी चीजें सोचनी शुरू कर दी है. भूत-प्रेत, जादू -टोना और राजा -रानी की कहानियों के अलावे भी बहुत ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ बच्चे बहुत बेहतर सोच और ज्ञान रखते हैं.

जब से कोलगेट ने अपना सैंपल भेजा है, और मेरा बेटा आशु ने जबसे उसके सभी चरित्र को देखा है उसने कई कहानियां बना डाली. हर बार कुछ न कुछ नया. मैं उसके द्वारा सुनाई गयी एक मैजिकल स्टोरी यहाँ share करने जा रही हूं.

" मम्मा! रात को मैंने सपने में देखा कि मेरा और मेरी दोस्त ज्योत्सना का चयन स्पेस वाक के लिए हुआ है. कुछ दिनों के ट्रेनिंग के बाद मुझे और मेरी दोस्त को satellite में बैठकर स्पेस में भेजे जाने का प्रोग्राम था. मुझे यह बताया गया कि किस तरह से satellite द्वारा हम दोनों को इंटरनेशनल स्पेस सेंटर तक भेजा जाएगा. हमारा खाना tube में रहेगा, जैसे कोलगेट टूथपेस्ट होता है. हमें जीरो गुरुत्वाकर्षण के बारे में बताया गया और उसमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक कैसे जाना है, उसका डमी करके दिखाया गया. स्पेस वाक से सम्बंधित और भी तकनीकी जानकारी दी गयी.



एक निश्चित दिन को हम दोनों श्री हरिकोटा से उड़ान भरने को तैयार थे. हमारे कई मित्र भी हमें देखने आये थे. हम दोनों satellite के अन्दर अपना स्पेशल जैकेट पहनकर बैठ गए. काउंट डाउन शुरू हुआ और हमारा उपग्रह तेजी से आसमान की ऊँचाइयों को पार करता चला गया.हाँ बहुत ही रोमांचक और डरा देने वाला था. कुछ ही मिनटों में हम स्पेस में पहुच चुके थे. वहां से हमें सारे ग्रह, नक्षत्र और उपग्रह साफ़ साफ़ दीख रहे थे. स्पष्ट और चमकीले ग्रह जैसे मानो मुख में चमकीले दांत हों. 




हमारा अंतरिश स्टेशन घर जैसा ही था, लेकिन वहां हमें चलने में बहुत मेहनत करनी पड़ती थी. अगले दिन हम दोनों स्पेस वाक के लिए निकले. स्पेस बहुत ही साफ़ और विशाल था. वहां से हमारी धरती भी साफ़ साफ़ दीख रही थी. हाँ उसका रंग थोडा काला दीख रहा था. 




इसी दौरान हमने देखा कि एक छोटा सा प्लेनेट दीख रहा है. हम लोग जबतक वहां पहुँच पाते कुछ एलियन हमारे पास आये और हम दोनों को पकड़ लिया और अपने ग्रह पर ले गए. उनके हाव भाव अच्छे नहीं थे. वे लोग बहुत गंदे दीख रहे थे. उनके दांत बदबू दे रहे थे. मैंने ज्योत्सना को अपने all time kit box से कोलगेट निकालकर उनको देने को कहा. पहले तो वे लोग नहीं ले रहे थे लेकिन जब उन्होंने लिया तो हमने sign language में उनको उसे दांत में लगाने को कहा. जैसे ही उन्होंने लगाया, बहुत बड़ा मैजिक हुआ. उनके दांत के सारे कीटाणु मर गए और उन्हें अच्चा फील हुआ. उन लोगों ने हमें बहुत सारा गिफ्ट दिया और हम जैसे ही गिफ्ट ले रहे थे तभी मम्मा की आवाज आई - " उठो आशु! स्कूल नहीं जाना है क्या? "


सचमुच यह बहुत ही प्यारा ड्रीम था.



“I’m blogging my #ColgateMagicalstories at BlogAdda in association with Colgate.



Feb 15, 2017

रिश्तों को ख़त्म कर रहा है मोबाइल फ़ोन

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोबाइल फ़ोन या टेबलेट जैसे आधुनिक यन्त्र हमारी जरुरत बन गए हैं. लेकिन कही ये हमारे रिश्तों को खतम तो नहीं कर रहे हैं.

मैं अपने एक जाननेवाले के यहाँ गयी. वहां तीन लोग थे. तीनों ने आपस में इशारों से हाय हेलो किया और फिर लग  गए अपने अपने मोबाइल फ़ोन में. कोई 15 -20 मिनट तक शायद ही किसी से किसी से बात की हो. मैं तो आश्चर्य में थी. यह हो क्या रहा है? आखिर ये लोग मोबाइल से चिपके क्यों हैं?


दूसरी बार एक रेस्टोरेंट में गयी. मेरे सामने वाली टेबल पर एक पति पत्नी बैठे थे. बेटर आया और उन लोगों से आर्डर ले गया. आर्डर ले जाने से खाना लाने तक का समय कैसा बिताया उन दोनों ने. पति अपने टेबलेट पर गेम खेलते रहे और पत्नी अपने फ़ोन से किसी से बात में लगी रही. यह देखकर बहुत ही अजीब लगा कि आखिर मोबाइल फ़ोन और आधुनिक उपकरणों ने हमसे आपस में बात करना तक छीन लिया है.

आपने भी बहुत सारे ऐसे अवसर देखें होंगे जहाँ लोग मोबाइल में लगे रहते हैं. आखिर इससे हमारे रिश्ते भी तो प्रभावित होते हैं. कई बार आपस में बात करने से लोगों का तनाव दूर होता है. हम एक दूसरे को समझते हैं और उनके साथ हमारा सरोकार होता है. 



लेकिन आज के  इस मोबाइल प्रधान समाज में लोगों के पास गेम खेलने का तो वक़्त है लेकिन अपने आस पड़ोस के लोगों के साथ,या बच्चों के साथ, परिवार के साथ बात करने का समय नहीं होता. इस पर आप भी विचार करें. हमारे कार्यों का हर प्रतिबिम्ब आपको दीख जाएगा. 

जीवन में साम्य होना बहुत जरुरी है. गैजेट्स का गुलाम बनना दुनिया के सबसे विकसित प्राणी को शोभा नहीं देता. इस post को पढने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!