“I am writing a letter to life for the #DearZindagi activity at BlogAdda“.
डियर ज़िन्दगी
सबसे पहले तो मैं तुझे अपने में मुझे बनाये रखने और अपनी साँसों को मेरी सांसों में समाये - बनाये रखने के लिए बहुत – बहुत धन्यवाद देती हूँ. तू है तो मैं हूँ, जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं. मैं यह पत्र इसलिए लिख रही हूँ ताकि मैं तुम्हें यह बता सकूँ कि मैं तुम्हें अपने में पाकर कैसा महसूस कर रही हूँ.
तुम्हारे कितने रूप हैं. कुछ ऐसे पल होते हैं जिनको याद कर मैं बहुत खुश हो जाती हूँ, कुछ लम्हे ऐसे भी हैं, जो आज भी याद आती हैं तो रोम-रोम पुलकित हो जाती हैं. कुछ पल उदास भी कर जाती हैं. यदि मैं उन लम्हों का लेखा-जोखा तैयार करूँ तो एक ग्रन्थ तैयार हो जाए.
आज मैं इस पत्र में उन सुखद एहसासों का जिक्र करना चाहूंगी जिसने मुझे जीने के नए मायने दिए हैं.
बचपन की वो यादें आजतक मैंने बहुत ही सहेज कर रखी हैं. जब मैं अपने बाबुल के आँगन में फुदकती रहती थी. प्यार और दुलार से सराबोर तुम न जाने कब मुझे यौवन की दहलीज पर लाकर छोड़ दिया.
यौवन का एहसास आते ही मन रोमांचित हो उठता है. पढाई-लिखाई के साथ साथ साजन की बातें, प्यार – मोहब्बत की बातें मन को कभी-कभी विचलित कर जाती थीं.
जिसकी ज़िन्दगी में प्यार न हो उसका जीवन बेकार. तुम्हारा दूसरा नाम प्यार भी है. कहते हैं प्यार, इश्क और मोहब्बत सभी अधूरे होते हैं. एक में आधा प है. एक में आधा श है तो एक में आधा ब है. लेकिन यह सिर्फ कहने की बात है. एक प्यार भरी ज़िन्दगी सुखद एहसास भरी होती है.
तुमने मुझे हर तरह का प्यार दिया, हर एक एहसास दिया. मां बाप का प्यार, भाई- बहन का प्यार, जीवन साथी का प्यार और बच्चों का प्यार.
लोग तुमसे शिकवा और शिकायत भी करते हैं कि मेरे ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है, वगैरह, वगैरह. लेकिन ऐसे लोग न तुम्हें जान पाते हैं और न ही तुम्हारी कदर कर पाते हैं. तू ही तो पहचान है, तुझसे ही हर अरमान है, तू ही तो वरदान है. तेरी अनुकम्पा से ही दुनिया के विविध रूपों को देखने का अवसर मिलता है. तू नहीं तो मानव तन मिट्टी का माधो!
मैं कुछ पलों का जिक्र करना चाहूंगी, जिसे आज भी याद कर मुझे बहुत सुखद एहसास होता है. जब तूने मेरी गोद में एक नन्ही-सी परी का सुख दिया, माँ की ममता जाग उठी और उस समय को, और उस घड़ी को याद कर बहुत सुखद आनंद मिलता है. प्रसव वेदना के पश्चात नन्हीं परी का आगमन, और उसको गोद में लेने के बाद अवर्णनीय सुख का एहसास; यही तो तुम्हारी ख़ासियत है.
ज़िन्दगी का नाम जीने में है. तुमसे क्या विरोध? तुम्हारे बिना सब सून! तुमने मुझे आजतक जो कुछ भी दिया है, इसके लिए मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूँ. तुम तो जानती हो कि दुःख और वेदना के भी कुछ पल आये. खोने और रोने के भी पल आये. लेकिन तुमने मुझे उनसे लड़ना सिखाया. मैं उनसे भिड़ी, लड़ी और आगे बढ़ी. ज़िन्दगी में अमृत है तो गरल भी है. तुमने दोनों को स्वीकारने की शक्ति दी. तुम मेरे हर पल की सहेली हो. तुम मेरी ऐसी सखी हो, जिसे मेरे बारे में सब पता है. मैं चाहकर भी तुमसे पृथक नहीं हो सकती. तुम हो, तो ही मैं हूँ. तुमसे ही मेरा नाम, मेरा काम, मेरा दाम और मेरा सुबहो-शाम है. तुमसे ही जीवन, तुमसे ही उल्लास, तुमसे ही आत्मा और तुमसे ही परमात्मा है.
इसी तरह से मेरा संबल बनी रहो.
तुम्हारी सहेली
सुमन