हमारे देश में कई वीर और विशिष्ट बालक हुए हैं. जैसे अर्जुन, एकलव्य,प्रहलाद आदि. ये बालक अपने लक्ष्य को पाने हेतु किये गए प्रयासों के लिए आज हमारे लिए दृष्टांत बन गए हैं. ध्रुव की साधना तथा लक्ष्य सिद्धि की कथा बहुत ही प्रेरणादायक है.
ध्रुव के जीवन चरित्र को लेकर श्री चन्द्रशेखर पाण्डेय ‘चन्द्र्मणी’जी ने बड़ी ही सुंदर कविता लिखी है. जिसे कल्याण के बालक अंक में छपा गया है. मैंने चन्द्रमणि जी की कविता साभार लिया है. यह कविता इस प्रकार है -
भक्त प्रहलाद की तरह ध्रुव भी ईश्वर के अटल भक्त थे. भगवान का प्रेम और आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने क्या-क्या कष्ट नहीं सहे. अपने लक्ष्य की सघन-साधना से वे संसार में सबसे ऊँचे स्थान पर अर्थात आकाश मंडल में जा विराजे, इसी प्रकार व्यक्ति यदि हिम्मत न हारकर अपनी कार्य-साधना में लगा रहता है तो वह एक दिन लक्ष्य के शिखर को अवश्य पाकर ही रहता है.
ध्रुव और प्रहलाद का नाम आज संसार में अमर है और आगे भी अमर रहेगा . किसी भी सच्चे लक्ष्य के कार्य- साधना व्यक्ति को सरे जग में अमरता और प्रसिद्धि प्रदान करती है |
ध्रुव के जीवन चरित्र को लेकर श्री चन्द्रशेखर पाण्डेय ‘चन्द्र्मणी’जी ने बड़ी ही सुंदर कविता लिखी है. जिसे कल्याण के बालक अंक में छपा गया है. मैंने चन्द्रमणि जी की कविता साभार लिया है. यह कविता इस प्रकार है -
(1)
“जन्म ही हुआ था जिसका तपोवनों के बीच,
वनवासियों ने सूतिका - गृह संवारा था
शीतल-सुगंध-मंद मलय समीर द्वारा
दोलित लताओं ने समोद पुचकारा था
यद्दपि न पाया मोद पितृ गोद का,
परन्तु माता करूणामयी ने प्रेम से दुलारा था
प्यारा था सभी को प्राण से भी वह बाल ध्रुव,
संतत-सुनीति-नयनों का बना तारा
(2)
आया था बुलाने से पिता की गोद में बैठने को,
किन्तु हा ! विमाता का कतु-वचन सुनना पड़ा
वचन नहीं, बाण थे, हुए हिय के पार,
अन्तर की वेदना से सिर धुनना पड़ा ||
आन का महान अपमान हो गया था, इस
हेतु चिन्तन में कुछ और गुनना पड़ा |
ध्रुव नाम सार्थक बनाने को धरा के बीच,
घोर तप का प्रशस्त पथ चुनना पड़ा ||
(3)
नारद से पा के उपदेश, मधुबन जाके,
तन को तुरीय तपश्चर्या में मिला दिया |
प्यासे प्रन्धारियों को, प्राणवीर बालक ने
हरिनाम कीर्तन का अमृत पिला दिया ||
ध्यान योग-सिद्धि से समाधि की दशा को प्राप्त
‘चन्द्र्मणी’ मानवों को सिखला दिया |
श्वासन को जीत, लिया आसन था इस तौर,
विष्णु भुजगासन का आसन हिला दिया ||
(4)
पाके वर विष्णु से विशेष लोक का प्रसाद,
भक्त ध्रुव का स्वागत ही विचित्र हो गया |
समदृष्टि, दृष्टि में रमा था रमणीय रूप,
तन-मन-जीवन सभी पवित्र हो गया ||
‘चन्द्र्मणी’ चाहना रही न चल सम्पदा की,
चौदहों-भुवन-चन्द्रिका चरित्र हो गया |
वनवास राज्य के सुखों का चलचित्र हुआ,
कल जो बना था शत्रु, आज मित्र हो गया |
(5)
शुद्ध सात्विकी स्वभाव, सत्संगति से
जीवन में भक्ति धन अधिक कम लिया |
‘चन्द्र्मणी’ चक्रवर्ति राज्य से वीराः रहा,
अंगराग नहीं, तन भस्म ही रमा लिया ||
शासन में पूर्ण अनुशासन प्रज्ञा पी रहा,
त्रास न किसी को, शस्त्र शांति औ’क्षमा लिया |
ध्रुव अघनाश्क को रोक-टोक थी न कुछ,
ध्रुव लोक में ही आसन जमा लिया ||
भक्त प्रहलाद की तरह ध्रुव भी ईश्वर के अटल भक्त थे. भगवान का प्रेम और आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने क्या-क्या कष्ट नहीं सहे. अपने लक्ष्य की सघन-साधना से वे संसार में सबसे ऊँचे स्थान पर अर्थात आकाश मंडल में जा विराजे, इसी प्रकार व्यक्ति यदि हिम्मत न हारकर अपनी कार्य-साधना में लगा रहता है तो वह एक दिन लक्ष्य के शिखर को अवश्य पाकर ही रहता है.
ध्रुव और प्रहलाद का नाम आज संसार में अमर है और आगे भी अमर रहेगा . किसी भी सच्चे लक्ष्य के कार्य- साधना व्यक्ति को सरे जग में अमरता और प्रसिद्धि प्रदान करती है |