ग्रामीण भारत का पारंपरिक संगीत हिंदी आलेख
ग्रामीण
भारत के पारंपरिक संगीत पर
लिखने से पहले इसके बारे में
यह जान लेना बहुत जरुरी है कि
इसके कई स्तर हैं, कई
रूप हैं और कई प्रकार हैं.
सबसे पहले
पारम्परिक संगीत हर ऋतू और
हर पर्व त्यौहार से जुड़ा होता
है. हम
जनवरी महीने से शुरू करें तो
सबसे पहले 26 जनवरी
आता है, इस
मौके पर तो ज्यादातर फ़िल्मी
देशभक्ति गीत स्कूल के बच्चे
गाते हैं लेकिन कुछ पारंपरिक
संगीत भी हैं जो देशभक्ति से
जुड़े होते हैं.
वसंत
पंचमी में सरस्वती माता के
बहुत सारे लोक भजन गाये जाते
हैं. एक
सबसे बड़ा बदलाव आया है वह यह
है कि हर दो चार गाँव पर एक
कीर्तन मण्डली होती है जो
विभिन्न आयोजनों पर अपनी
प्रस्तुति देते हैं. कुछ
मूल भजन के साथ ही साथ ये मण्डली
कुछ पैरोडी भी तैयार करते हैं
जो तत्कालीन लोकप्रिय फ़िल्मी
गीत पर आधारित होता है.
यह सुनने में
बहुत ही लोकप्रिय होता है और
युवा वर्ग इसे विशेष रूप से
पसंद करते हैं.
वसंतपंचमी
के बाद होली गायन शुरू हो जाता
है. होली
का पर्व एक सरस पर्व हैं.
होली से सम्बंधित
एक से बढ़कर एक लोकसंगीत जनमानस
में रचे बसे हैं. जोगीरा,
फाग, धमाल,
चौताला,
भजन, ठुमरी
आदि अनेक तरह के संगीत होली
के अवसर पर गाये जाते हैं.
ग्रामीण स्तर
की कीर्तन मण्डली में अगर
वाद्य यंत्र को देखा जाय तो
आपको प्रायः एक हारमोनियम,
ढोलक (कभी
कभी तबला), झाल,
मंजीरा (दो
से तीन जोड़ी) ही
होती हैं. यह
कीर्तन मण्डली जब आपस में संगत
करती हैं तो गाँव के बूढ़े या
बुजुर्ग शामिल होते हैं और
वहीँ उन पारंपरिक गीतों या
धुनों को गाते बजाते हैं जो
मौखिक रूप से कई पीढ़ियों से
चला आ रहा है.
कभी
कभी लगता है कि आज के इस तकनीकी
युग में इसे रिकॉर्ड कर संरक्षित
का लेना चाहिए. दुर्गा
पूजा, श्री
कृष्णाष्टमी, नवरात्र,
छठ,
महाशिवरात्रि,
सत्यनारायण
पूजा, नवाह,
अष्टयाम,
आदि अनेक
भक्तिमयी आयोजन होते हैं जब
लोग इक्कठे होकर गीत-
संगीत गाते
बजाते हैं.
शहरों
में MUSIC सीखने
के सेन्टर होते हैं जहाँ बच्चे
जाते हैं और फीस भरकर ये कला
सीखते हैं. गाँव
में लोग सिर्फ अभ्यास कर
निःशुल्क सीख लेते हैं.
ग्रामीण परिवेश
में मंदिर, शिवाले
या सामुदायिक भवन ऐसा स्थान
होता है जहाँ भजन कीर्तन का
आयोजन होता रहता है.
समाज
में कीर्तनकार को विशेष सम्मान
प्राप्त होता है लेकिन दुःख
की बात यह है कि इनकी संख्या
लगातार घटती जा रही है.
गाँव से शहर
की तरफ लोगों का तेजी से पलायन
भी पारंपरिक संगीत के लिए एक
बाधा है. पहले
संगीत और संगीतकार की बहुत
इज्जत होती थी, आज
के मोबाइल युग में यह सुलभ
साधन बन गया है. लेकिन
आज के युवा इसे एक मौका के रूप
में देखे और यदि उन्हें कभी
कोई भी दुर्लभ या अच्छा पारंपरिक
संगीत सुनाई पड़े तो वह उसे
रिकॉर्ड कर YOUTUBE पर
डाल सकते हैं, ताकि
उसे और लोग भी सुन सकें और जान
सकें.