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May 23, 2013

Behtarlife.com



एक अपील 

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धन्यवाद सहित 

पंकज कुमार

May 20, 2013

Family Tree of Choudhary, Dularpur

Here is the family tree of the Choudhary's  of Dularpur village.

Choudhary Family Tree 1

Choudhary Family Tree 2

Choudhary Family Tree 3


May 18, 2013

हरिहरपुर वैद्यालय

यह टोला राजस्व ग्राम चक भीखन में स्थित है. यहाँ पर अधिक लोग शाकल्य दीपी ब्राह्मण हैं. इन लोगों का जाति पेशा लोगों का इलाज और आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करना था. वैद्य मानिक चन्द्र मिश्र, श्यामल बिहारी मिश्र आदि प्रमुख वैद्य राज हुए. आज भी इन लोगों का परिवार इस कार्य से जुड़ा हुआ है. लोगों का कहना है कि यहीं के वैद्य गजाधर पाठक ने सिमरी बख्तियारपुर के नवाब की पत्नी को जानलेवा मियादी बुखार से बचाया था. नवाब ने इनको इसके बदले 300 बीघे की जागीर भेट दी थी.
प्रभुनाथ मिश्र, भूपेंद्र बिहारी मिश्र, धीरेन्द्र मिश्र, दीनानाथ मिश्र, शम्भुनाथ मिश्र, सुनील कुमार मिश्र कई प्रमुख व्यक्ति यहीं के हैं.

May 17, 2013

रातगाँव बरारी


तीन मुहानी से पश्चिम उत्तर गुप्ता बांध के उस पार रात गाँव बरारी स्थित
है. यहाँ मुस्लिम, राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार, वैश्य, पासवान आदि समुदाय के लोग रहते हैं. नवोदय क्लब रात गाँव वॉली बाल का क्लब है. यहाँ के युवक इसी परिसर में वॉली बाल का अभ्यास करते हैं. यहाँ टोला से सटा एक प्राथमिक विद्यालय है. राजेंद्र सिंह (भूटान में शिक्षक थे), इंदु कुमार सिंह, अनिल सिंह, गिरीश कुमार सिंह, आदित्य कुमार, रंधीर, सचिन इस टोले के कुछ प्रमुख लोग हैं.

सिमरबन्ना

वर्तमान में रात गाँव थाना नंबर ११५ बाउंड्री कमीशनर नंबर २८१ रेवेन्यू सर्वे नाम मिर्जापुर भीम को सिमरबन्ना कहा जाता है. यहाँ पर सिमल के बहुत पेड़ हुआ करते थे. अभी रात गाँव गुप्ता बाँध के दोनों तरफ बसा हुआ है जिसमे अधिकांश अनुसूचित जाति, पासवान और राजपूत लोग बसे हुए हैं. पासवान में ढोरहाय पासवान और चंचल भगत प्रसिद्द व्यक्ति हुए. राजपूत में श्री मिश्रीलाल सिंह, राम निहोरा सिंह , मुसो सिंह आदि प्रमुख व्यक्ति हुए

चोचवावन

कहा जाता है कि गुप्ता बाँध के पास स्थित तीन मुहानी से पश्चिम चोचवावन एक खाई नुमा स्थान है. बड़े बुजुर्गों का कहना है कि जब राष्टीय राजमार्ग 28 अवध तिरहुत रोड के नाम से जाना जाता था, से गुजरने वाले राहगीर और व्यापारी को लुटेरे लूट लेते थे और उनको मारकर इसी चोचवा वान की खाई में फेक देते थे.
 

May 16, 2013

दुलारपुर के टोला

दुलारपुर नया टोला पेठिया गाछी

जैसा कि पिछले पोस्ट में जिक्र हो चुका है कि दुलारपुर दियारा में 1955 - 56 के कटाव के पहले दो टोला थे. धनिक लाल सिंह टोला और पत्ती राय टोला1955 - 56  के कटाव के बाद सारी जमीन गंगा नदी में चली गई. लोगों के पास पुनर्वास की समस्या आ गई. ऐसी स्थिति में दोनों टोला के लोग संयुक्त रूप से नयानगर और रातगाँव करारी  मौजे में आकर बस गए. नयानगर और तोखन सिंह टोला के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 28 से पूरब नया टोला आकर बस गया. नया टोला इसलिए कि नया आकर बसे थे और पेठिया गाछी इसलिए कि पहले यहाँ गाछी थी जिसके पश्चिमी कोने में प्रत्येक शनिवार को पेठिया यानि हाट लगता था.

खेल कूद
दुलारपुर दियारा में ही धनिक लाल सिंह टोला और पत्ती राय टोला के युवक फुटबॉल खेला करते थे. उन दिनों दियारा में फुटबॉल की एक काफी अच्छी टीम हुआ करती थी. कटाव के बाद उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नयाटोला में श्री चंद्रदेव सिंह सुपुत्र अम्बिका सिंह ( पप्पू इंजीनियर के पिताफुटबॉल का खेल पेठिया गाछी परिसर में लगातार चलता रहा. जन्दाहा उच्च विद्यालय के प्रांगण में हुए फुटबॉल मैच में यहाँ के खिलाडियों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया. परन्तु कालांतर में कुशल नेतृत्व के अभाव में फुटबॉल का खेल बंद हो गया. पुनः 1964-65 में कुछ युवकों ने इस खेल परंपरा को जारी रखने का काम किया और एक वॉलीबॉल टीम की स्थापना की गयी. इसमें चंद्रदेव सिंह पुत्र रामगुलाम सिंह, दिनेश चौधरी पुत्र जनक चौधरी, राम निरंजन सिंह, श्री राम चौधरी, आदि प्रमुख थे. इसका नाम ग्रामीण क्लब दुलारपुर (villageclubdularpur.blogspot.com) रखा गया. ग्रामीण क्लब दुलारपुर का इतिहास गौरवशाली रहा है. बाद में खेल स्थल तीनमुहानी  के पास चला गया. वहां टीम का नेतृत्व विजयशंकर सिंह आधारपुर करते थे. हरिहरपुर वैध्यालय के श्री शम्भू नाथ मिश्र के निर्देशन में यह टीम खूब फली -फूली.
ग्रामीण क्लब दुलारपुर के माध्यम से कई युवक सम्प्रति सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं. ग्रामीण क्लब दुलारपुर ने कई बेहतरीन खिलाडी दिए:
> राम निरंजन सिंह (Represented All India University for Volleyball)
> सुनील कुमार सिंह (Working at HEC Ranchi)
> प्रेमचंद सिंह फानू ( Working with BSL)
> सुरेन्द्र कुमार सिंह (Working with Indian Railways)
> दिनेश चौधरी (Working with Indian Railways)
> मंतोष कुमार सिंह (Working with Indian Railways)
> राजेन्द्र सिंह उर्फ़ पप्पू (Engineer)
> विजय कुमार सिंह (Working with Indian Railways)
> विजय कुमार चौधरी (Working with Indian Railways)
> विजय नारायण तिवारी (Working with Indian Railways)
> हीरालाल कुंवर (Working with Indian Railways)
> अनिश कुमार टूटू (Working with Indian Railways)
> मंतोष चौधरी (कोच)
> अनंत कुमार चौधरी ( एजी ऑफिस )
> राम निवास चौधरी CISF
>शिवराम चौधरी बिहार पुलिस
>बलराम चौधरी, बिहार पुलिस
> ललन कुमार, आर्मी
>राम कुमार सिंह, BSF
> राजन कुमार, आर्मी
यह लिस्ट बहुत लम्बी है.

ग्रामीणों के सहयोग से हर साल यहाँ टूर्नामेंट का आयोजन कराया जाता है ताकि हमारे नवोदित खिलाडी प्रोत्साहित होकर इसकी गरिमा और मर्यादा को बनाये रख सकें.

नाट्य कला और अन्य सांस्कृतिक हलचल
रंग मंच मानव जीवन के लिए हमेशा से एक महत्त्वपूर्ण विधा रही है. इसके द्वारा पात्र भाव सम्प्रेषण, अभिनय और संगीत द्वारा अपनी भावना को लोगों तक पहुचाते हैं. टेलीविज़न से पहले इसका ग्राम्य जीवन में एक मुख्य स्थान था. दुलारपुर दियारा में भी नाटकों का मंचन होता था. कहा जाता है कि धोती को जोड़कर परदा बनाया जाता था. लकड़ी के बड़े बड़े ढेर द्वारा आग जलाकर और मशाल जलाकर रौशनी का प्रबंध किया जाता था. इस प्रकार गाँव में नाटक, भजन-कीर्तन, अष्टयाम, नवाह आदि होते रहते थे. रघुनन्दन सिंह एवं जगदेव सिंह तत्कालीन रामायणी थे. हरिहर सिंह, शिवनंदन सिंह प्रसिद्द गवैया हुए . राम प्रताप सिंह, जागेश्वर सिंह, श्री राम सिंह प्रसिद्द दोलाकिया हुए. रंग मंच के कलाकारों में हृदय नारायण सिंह, जनकधारी सिंह, राम उदित सिंह, सुग्गी वैद्य, राजो सिंह, जनार्दन सिंह, सच्चिदानंद सिंह आदि प्रमुख हैं.
नवयुवक नाट्य कला परिषद् की स्थापना यहाँ के नौजवानों ने जनार्दन सिंह शिक्षक के नेतृत्व में हुआ. नाटक का मंचन हर साल छठ पूजा के अवसर पर किया जाता है. 1972 में भोलाकांत झा के नेतृत्व में इसका संविधान निर्मित हुआ और कार्यकारिणी गठित हुई. 1981 का वर्ष नवयुवक नाट्य कला परिषद् के लिए एक महत्त्वपूर्ण साल था. तेघरा प्रखंड स्तरीय प्रतियोगिता में दो गज कफ़न नाटक सर्वश्रेष्ट नाटक चुना गया. भोलाकांत झा सर्वश्रेष्ट निर्देशक, अवधेश सिंह सर्वश्रेष्ट अभिनेता.
नवयुवक नाट्य कला परिषद् के कई और निर्देशक इस प्रकार हैं : अरुण कुमार सिंह, रामा नंद चौधरी, चंद्रकांत झा आदि.

ठाकुरबाड़ी
दुलारपुर दियारा में ही जगरनाथ दास के नेतृत्व में ठाकुर बड़ी निर्माण कार्य आरम्भ हुआ. दो लाख ईट बनाकर पकाया गया और भव्य ठाकुरबाड़ी बनाया गया. 1954 में दुलारपुर दियारा में श्री राम महायज्ञ हुआ था. गंगा में कटाव होने पर जब दुलारपुर ठाकुरबाड़ी गिरने को था तब श्री जगरनाथ दास जी ने सीताराम जी की प्रतिमा को उठाकर नारेपुर ठाकुरबाड़ी में रख दिया. वे स्वयं दहिया रसलपुर ठाकुरबाड़ी में चले गए और वहीँ जाकर पूजा पाठ करने लगे. कटाव के कुछ वर्षों बाद एक ग्रामीण सोगारथ सिंह और अमरदास बाबा उर्फ़ तपसी जी दियारा से नाव पर आ रहे थे. दोनों ने नारेपुर से भगवान् जी को दुलारपुर वापस लाने की योजना बनाई. सोगारथ सिंह ने बेचू चौधरी से छः कट्ठा जमीन यहाँ गाँव में लिया और बदले में दियारा में डेढ़ बीघा जमीन दिया. बाद में छः कट्ठा जमीन गीता चौधरी से ख़रीदा गया. अभी ठाकुरबाड़ी परिसर 12 कट्ठा का है. ठाकुर बाड़ी के पास कृषियोग्य लगभग 25 बीघा अपनी जमीन दियारा में है. आषाढ़ प्रथम पक्ष द्वितीय को भगवान को नारेपुर से लाकर प्राण प्रतिष्ठा किया गया . श्री विसुन दास महंथ और अमरदास सहायक पुजारी बनाये गए. फिर मुना दास और फिर नारायण दास आये. नारायण दास के समय ठाकुर बाड़ी पक्की बनाया गया. विसुन देव दास और नारायण दास के समय श्री शिव महारुद्र यज्ञ हुआ. 1991 में शंकर पोद्दार ने अपने पिता राम स्वरुप पोद्दार की पावन स्मृति में एक शिव मंदिर इसी परिसर में बनवाया. आदर्श चौक दुलारपुर पेठिया गाछी में एक भव्य श्री शिव पार्वती हनुमान मंदिर का निर्माण जन सहयोग से 1985 में हुआ.

May 13, 2013

दुलारपुर का टोला

नयानगर 
जैसा कि पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा कि मोती सिंह ने 300 बीघा जमीन अयोध्या नील कोठी के तत्कालीन कोठीवाल मार्शन से लीज पर लेकर नयानगर नाम से एक सूर्य मंडलाकार टोला बसाया था. बुजुर्गों का मानना है कि सूर्यमंडल में बास वाले स्थान पर धन से ज्यादा सरस्वती की वृद्धि होती है. इसके कई उदहारण हैं - बाबु रण बहादुर सिंह ( मोती सिंह के मौसेरा भाई और शिव कुमार के बाबा), उनके पुत्र ब्रज भूषण सिंह (रामायणी ), सुखदेव सिंह (गवैया), राम उचित सिंह (पहलवान, विधायक के चाचा), राम सहाय चौधरी, सबद चौधरी, रामेश्वर सिंह ( अतिथि सत्कार के लिए प्रसिद्द), राजेंद्र प्रसाद सिंह , राज्य सचिव, भाकपा, राम नरेश सिंह (ग्राम पंचायत पर्यवेक्षक), नन्ह्कुजी, मनोज कुमार (पी ओ), चंद्रदेव शर्मा (ओवरसियर), डॉ दिलीप कुमार शर्मा, दुलरुआ प्रसाद सिंह (फारसी के ज्ञाता ), रामजी सिंह, श्री नारायण शर्मा (अमीन), राजेंद्र प्रसाद सिंह (प्रधानाध्यापक ), मदनमोहन सिंह गाँधी(शिक्षक और समाजसेवी) आदि. 
नयानगर का मौजे नंबर १२३ है. इसका बाउंड्री कमीशनर नंबर ३२८ और कलेक्टरी रजिस्टर नंबर ६१० है.
सांस्कृतिक उपलब्धियां
नयानगर में नाट्य कला को जीवंत रूप देने के लिए नरेश सिंह, फुलेना सिंह परिवार के श्री बिन्देश्वरी सिंह का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है. कहा जाता है कि नाटक मंचन के लिए वे अपना पैसा लगाकर सामन खरीद लेते थे. उस समय उनको साथ देने वालों लोगों में अधारपुर के श्री सिंघेस्वर सिंह , महीप नारायण सिंह तथा धेउरानी के श्री गजाधर सिंह का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है. ऐसे इसका नए सिरे से गठन मनोविनोद केंद्र की स्थापना द्वारा हुई. 26 जून १९५६ को श्री राम नरेश सिंह द्वारा इसकी स्थापना की गयी. ग्रामसेवक नामक एक सामाजिक नाटक का प्रथम मंचन किया किया जिसके लेखक सिमरिया निवासी गौरीकांत शशिधर नामक व्यक्ति थे जो खुद एक ग्राम सेवक थे. मनोविनोद केंद्र के प्रथम सम्मलेन का उद्घाटन श्री विन्देश्वरी सिंह तत्कालीन प्रधानाध्यापक श्री विष्णुदेव नारायण उच्च विद्यालय तेयाय के कर कमलों द्वारा किया गया. जो आज तक भी उतार चढ़ाव करते हुए गतिशील है.
खेल कूद
सर्वप्रथम भूतपूर्व विधायक श्री राजेंद्र प्रसाद सिंह द्वारा वॉलीबॉल के खेल का आरम्भ हुआ. उन दिनों राजो दा जन्दाहा उच्च विद्यालय के छात्र थे. वहीँ से खेल सामग्री लाकर उन्होंने सर्वप्रथम नयानगर नोन में खेलना शुरू किया. यहाँ इलाके के सभी खिलाड़ी खेलने आते थे. लेकिन बीच में इसमें शिथिलता आ गई. बाद में फिर ब्लू स्टार क्लब नयानगर की स्थापना हुई और इसमें युवा खिलाड़ी नियमित अभ्यास के लिए आते हैं.
स्वास्थ्य उपकेन्द्र नयानगर
2 अक्टूबर १९६४ के प्रखंड विकास समिति के निर्णय के आलोक में स्वास्थ्य उपकेन्द्र की स्थापना हुई . देवनारायण सिंह और राम नरेश सिंह के भगीरथ प्रयास से यह उपकेन्द्र इस गाँव में खुल सका. इसकी स्थिति बीच में काफी सोचनीय था लेकिन ग्राम पंचायत राज आने से अभी इसमें सुधार हुआ है

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया नयानगर

 
नयानगर में १९८१ में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा खुली. यह बैंकिंग
के दृष्टि कोण से एक महत्त्वपूर्ण बात थी. आस पास के कई गाँव के लोग अपना दैनिक लेन देन, ऋण आदि के लिए यहाँ आते हैं. इसका प्रमुख श्रेय राजेंद्र प्रसाद सिंह को जाता है.