दुलारपुर का चित्रनारायण महाल
दुलारपुर गाँव की एक बेटी नरहन स्टेट में ब्याही गयी। कहा जाता हे कि बेटी के पिता ने दुलारपुर गाँव अपनी बेटी को दान स्वरूप उसके खोइछे में दिया था। परन्तु खेतों में कृषि कार्य पिता ही करते आ रहे थे। जब नरहन स्टेट वालों ने अपनी जमीन दखल करना चाहा तो दुलारपुर के लोगों को ऐतराज हुआ और नरहन के लोगों को खेत पर से भगा दिया गया।
परन्तु कागजी मामलें मं नरहन के लोग ही सही थे। उन लोगों ने कानूनी प्रक्रिया शुरू की, तथ्य नरहन के कुछ लोगों ने प्रशासन के कहने पर दुलारपुर जाकर अपनी जमीन दखल करनी चाही। वे करीब सौ लोग नरहन से आकर वर्तमान बाया नदी के इस पार दी अपना छावनी लगाया। वे लोग अगले सुबह में खेत पर छावा बोलने जाते। राहगीरों के द्वारा दियारा में बसे दुलारपुर के लोगों को इन सारी बातों की जानकारी मिली। अतः गाँव के एक तेज एवं साहसी आदमी को वहाँ वहाँ उनके पास भेजा। वह आदमी घोड़े पर चढ़कर छावनी के बगल से ही गुजरा। वहाँ छावनी के लोगों ने उसे बुलाया और पुछा क्या तुम दुलारपुर गाँव से आ रहे हो? उसने कहा - क्या यह बताओगे कि दुलारवासी हम लोगों के आने की खबर जानते हैं। उसने कहा - हाँ जानते हैं तभी तो वहाँ हजारों पहलवान को जुटा देखा। पॅडारक, सिमारिया, मोकामा कई जगह के पहनवान को बुलाया गया है, वे लोग की सवेरे किसी खेत पर जानेवाले हैं, वहीं पर नरहन से लड़ाई होने वाली है।
ऐसा उसने बिल्कुल झूठ बोला था, दरअसल दुलारपुर के तरफ से किसी भी पहलवान को नहीं बुलाया गया था। यह अब सुनने के बाद एक ने कहाμकहाँ हम सौ और वह हजार। अतः हमला करना ठीक नहीं होगा। हम लोग वापस ही लौट चलें। ऐसा ही हुआ। वे सवेरे वापस नरहन लौट गये। उन्होंने गाँव के प्र. विशिष्ट व्यक्ति पर मुकदमा दायर कर दिया। केस चल पड़ा। अब नरहन के लोगों को दुलारपुर का ही एक गवाह तलाशना था ताकि वे केस जीत सकें। उन्होंने गाँव के एक सीध-साध आदमी को चुना, जो हरिनारायण सिंह का पोता था, परपोता रहा होगा। उसने उन्हें प्रलोभित करते हुए कहा - अगर आप सही-सही बयान देंगे, तो अंग्रेज आपको चौधरी की उपाधि देंगे । आपका नाम चारों तरफ फैल जायेगा।
दुलारपुर गाँव की एक बेटी नरहन स्टेट में ब्याही गयी। कहा जाता हे कि बेटी के पिता ने दुलारपुर गाँव अपनी बेटी को दान स्वरूप उसके खोइछे में दिया था। परन्तु खेतों में कृषि कार्य पिता ही करते आ रहे थे। जब नरहन स्टेट वालों ने अपनी जमीन दखल करना चाहा तो दुलारपुर के लोगों को ऐतराज हुआ और नरहन के लोगों को खेत पर से भगा दिया गया।
परन्तु कागजी मामलें मं नरहन के लोग ही सही थे। उन लोगों ने कानूनी प्रक्रिया शुरू की, तथ्य नरहन के कुछ लोगों ने प्रशासन के कहने पर दुलारपुर जाकर अपनी जमीन दखल करनी चाही। वे करीब सौ लोग नरहन से आकर वर्तमान बाया नदी के इस पार दी अपना छावनी लगाया। वे लोग अगले सुबह में खेत पर छावा बोलने जाते। राहगीरों के द्वारा दियारा में बसे दुलारपुर के लोगों को इन सारी बातों की जानकारी मिली। अतः गाँव के एक तेज एवं साहसी आदमी को वहाँ वहाँ उनके पास भेजा। वह आदमी घोड़े पर चढ़कर छावनी के बगल से ही गुजरा। वहाँ छावनी के लोगों ने उसे बुलाया और पुछा क्या तुम दुलारपुर गाँव से आ रहे हो? उसने कहा - क्या यह बताओगे कि दुलारवासी हम लोगों के आने की खबर जानते हैं। उसने कहा - हाँ जानते हैं तभी तो वहाँ हजारों पहलवान को जुटा देखा। पॅडारक, सिमारिया, मोकामा कई जगह के पहनवान को बुलाया गया है, वे लोग की सवेरे किसी खेत पर जानेवाले हैं, वहीं पर नरहन से लड़ाई होने वाली है।
ऐसा उसने बिल्कुल झूठ बोला था, दरअसल दुलारपुर के तरफ से किसी भी पहलवान को नहीं बुलाया गया था। यह अब सुनने के बाद एक ने कहाμकहाँ हम सौ और वह हजार। अतः हमला करना ठीक नहीं होगा। हम लोग वापस ही लौट चलें। ऐसा ही हुआ। वे सवेरे वापस नरहन लौट गये। उन्होंने गाँव के प्र. विशिष्ट व्यक्ति पर मुकदमा दायर कर दिया। केस चल पड़ा। अब नरहन के लोगों को दुलारपुर का ही एक गवाह तलाशना था ताकि वे केस जीत सकें। उन्होंने गाँव के एक सीध-साध आदमी को चुना, जो हरिनारायण सिंह का पोता था, परपोता रहा होगा। उसने उन्हें प्रलोभित करते हुए कहा - अगर आप सही-सही बयान देंगे, तो अंग्रेज आपको चौधरी की उपाधि देंगे । आपका नाम चारों तरफ फैल जायेगा।
वे बेचारे सीधा -साधा आदमी था ही कोर्ट में बयान दे दिया कि साहेब चन्दन लगाता हूँ, पेजा-पाठ, गाँगा-स्नान करता हूँ। झूठ नहीं कहूँगा। वास्तव में यह जमीन इन्हीं लोगों का ही है। दुलारपुर के लोगों ने यह जमीन इन्हें दान में दे दी है तथ्य इनके खेत पर जाने पर कुछ लोगों ने नरहन वासियों को खदेड़ दिया था। सभी नब्बे लोगों को तीन-तीन महीने की सजा हुई तथ्य उस गवाह को अंग्रेजों ने चैध्री कहकर पुकारना प्रारंभ कर दिया। चैध्री उपराम प्राप्ति की एक किंवदन्ती यह भी है। जो आजतक वर्तमान है। बाद में जब जमीन का स्थायी बन्दोबस्त हुआ तथ्य सर्वे हुआ तब दुलारपुर नाम के साथ चित्रानारायण जुट गया। कहा जाता है कि बाबू चित्रानारायण सिंह तत्कालीन कामेश्वरनारायण सिंह के खानदान के सम्बन्ध् ी थे। एक बार 1948 में श्री कामेश्वरनारायण सिंह कार्तिक मास में गँगा सेवन करने अपने मुलाजिमों के साथ दुलारपुर दियारा आये। उन्होंने अपना शिविर बाबा जगन्नाथ दास ठाकुरवारी के निकट लगाया। उनके गँगा सेवन के पश्चात, उक्त वैवाहिक संबंध् को यादगार बनाने हेतु उन्होंने दुलारपुरवासियों को एक शाम (रंगूनिया चावल) भोज खिलाया था और श्री रामनरेश सिंह उसके प्रत्यक्षदर्शी थे। उनके अनुसार - श्री कामेश्वर नारायण सिंह ने अपना कुर्ता तक गंजी तो खोल ही लिया था तथा भोज खाने वाले सभी लोगों को भी अपना कुर्ता खोल लेने के लिए कहा था। अतः लोगों से अपना कुरता आदि खोलकर काँख तले दबा लिया था। तत्पश्चात् भोज खोते थे। श्री कामेश्वर नारायण सिंह स्वयं भोज का मुआयना करते थे तथा आपसी संबंध् की चर्चा करते थे।