जैसा
कि पिछले पोस्ट में जिक्र हो
चुका है कि दुलारपुर दियारा
में 1955 - 56 के कटाव के पहले दो टोला थे.
धनिक लाल सिंह
टोला और पत्ती राय टोला. 1955 - 56 के कटाव के बाद सारी जमीन गंगा
नदी में चली गई. लोगों
के पास पुनर्वास की समस्या आ
गई. ऐसी
स्थिति में दोनों टोला के लोग
संयुक्त रूप से नयानगर और रातगाँव करारी मौजे में आकर
बस गए. नयानगर
और तोखन सिंह टोला के बीच
राष्ट्रीय राजमार्ग 28
से पूरब नया
टोला आकर बस गया. नया
टोला इसलिए कि नया आकर बसे थे
और पेठिया गाछी इसलिए कि पहले
यहाँ गाछी थी जिसके पश्चिमी
कोने में प्रत्येक शनिवार को
पेठिया यानि हाट लगता था.
खेल
कूद
दुलारपुर
दियारा में ही धनिक लाल सिंह
टोला और पत्ती राय टोला के
युवक फुटबॉल खेला करते थे.
उन दिनों दियारा
में फुटबॉल की एक काफी अच्छी
टीम हुआ करती थी. कटाव
के बाद उसी परंपरा को आगे बढ़ाते
हुए नयाटोला में श्री चंद्रदेव
सिंह सुपुत्र अम्बिका सिंह
( पप्पू
इंजीनियर के पिता) फुटबॉल का खेल पेठिया गाछी परिसर में
लगातार चलता रहा. जन्दाहा
उच्च विद्यालय के प्रांगण
में हुए फुटबॉल मैच में यहाँ
के खिलाडियों ने अपनी प्रतिभा
का परिचय दिया. परन्तु
कालांतर में कुशल नेतृत्व के अभाव में फुटबॉल का खेल बंद
हो गया. पुनः 1964-65 में कुछ युवकों ने इस खेल परंपरा
को जारी रखने का काम किया और
एक वॉलीबॉल टीम की स्थापना
की गयी. इसमें
चंद्रदेव सिंह पुत्र रामगुलाम
सिंह, दिनेश
चौधरी पुत्र जनक चौधरी,
राम निरंजन
सिंह, श्री
राम चौधरी, आदि
प्रमुख थे. इसका
नाम ग्रामीण क्लब दुलारपुर
(villageclubdularpur.blogspot.com) रखा
गया. ग्रामीण
क्लब दुलारपुर का इतिहास
गौरवशाली रहा है. बाद
में खेल स्थल तीनमुहानी के
पास चला गया. वहां
टीम का नेतृत्व विजयशंकर सिंह
आधारपुर करते थे. हरिहरपुर
वैध्यालय के श्री शम्भू नाथ
मिश्र के निर्देशन में यह टीम
खूब फली -फूली.
ग्रामीण
क्लब दुलारपुर के माध्यम से
कई युवक सम्प्रति सरकारी
सेवाओं में कार्यरत हैं.
ग्रामीण क्लब
दुलारपुर ने कई बेहतरीन खिलाडी
दिए:
> राम
निरंजन सिंह (Represented All India
University for Volleyball)
> सुनील
कुमार सिंह (Working at HEC Ranchi)
> प्रेमचंद
सिंह फानू ( Working with BSL)
> सुरेन्द्र
कुमार सिंह (Working with Indian
Railways)
> दिनेश
चौधरी (Working with Indian Railways)
> मंतोष
कुमार सिंह (Working with Indian
Railways)
> राजेन्द्र सिंह उर्फ़ पप्पू (Engineer)
> विजय
कुमार सिंह (Working with Indian
Railways)
> विजय
कुमार चौधरी (Working with Indian
Railways)
> विजय
नारायण तिवारी (Working with
Indian Railways)
> हीरालाल
कुंवर (Working with Indian Railways)
> अनिश
कुमार टूटू (Working with Indian
Railways)
> मंतोष
चौधरी (कोच)
> अनंत
कुमार चौधरी ( एजी
ऑफिस )
> राम
निवास चौधरी CISF
>शिवराम
चौधरी बिहार पुलिस
>बलराम
चौधरी, बिहार
पुलिस
> ललन
कुमार, आर्मी
>राम
कुमार सिंह, BSF
> राजन
कुमार, आर्मी
यह
लिस्ट बहुत लम्बी है.
ग्रामीणों
के सहयोग से हर साल यहाँ
टूर्नामेंट का आयोजन कराया
जाता है ताकि हमारे नवोदित
खिलाडी प्रोत्साहित होकर
इसकी गरिमा और मर्यादा को
बनाये रख सकें.
नाट्य
कला और अन्य सांस्कृतिक हलचल
रंग
मंच मानव जीवन के लिए हमेशा
से एक महत्त्वपूर्ण विधा रही
है. इसके
द्वारा पात्र भाव सम्प्रेषण,
अभिनय
और संगीत द्वारा अपनी भावना
को लोगों तक पहुचाते हैं.
टेलीविज़न
से पहले इसका ग्राम्य जीवन
में एक मुख्य स्थान था.
दुलारपुर
दियारा में भी नाटकों का मंचन
होता था.
कहा
जाता है कि धोती को जोड़कर परदा
बनाया जाता था.
लकड़ी
के बड़े बड़े ढेर द्वारा आग जलाकर
और मशाल जलाकर रौशनी का प्रबंध
किया जाता था.
इस
प्रकार गाँव में नाटक,
भजन-कीर्तन,
अष्टयाम,
नवाह
आदि होते रहते थे.
रघुनन्दन
सिंह एवं जगदेव सिंह तत्कालीन
रामायणी थे.
हरिहर
सिंह,
शिवनंदन
सिंह प्रसिद्द गवैया हुए .
राम
प्रताप सिंह,
जागेश्वर
सिंह,
श्री
राम सिंह प्रसिद्द दोलाकिया
हुए. रंग
मंच के कलाकारों में हृदय
नारायण सिंह,
जनकधारी
सिंह,
राम
उदित सिंह,
सुग्गी
वैद्य,
राजो
सिंह,
जनार्दन
सिंह,
सच्चिदानंद
सिंह आदि प्रमुख हैं.
नवयुवक
नाट्य कला परिषद् की स्थापना
यहाँ के नौजवानों ने जनार्दन
सिंह शिक्षक के नेतृत्व में
हुआ.
नाटक
का मंचन हर साल छठ पूजा के अवसर
पर किया जाता है. 1972 में भोलाकांत झा के नेतृत्व
में इसका संविधान निर्मित
हुआ और कार्यकारिणी गठित हुई.
1981 का वर्ष नवयुवक नाट्य कला
परिषद् के लिए एक महत्त्वपूर्ण
साल था.
तेघरा
प्रखंड स्तरीय प्रतियोगिता
में दो गज कफ़न नाटक सर्वश्रेष्ट
नाटक चुना गया.
भोलाकांत
झा सर्वश्रेष्ट निर्देशक,
अवधेश
सिंह सर्वश्रेष्ट अभिनेता.
नवयुवक
नाट्य कला परिषद् के कई और
निर्देशक इस प्रकार हैं :
अरुण
कुमार सिंह,
रामा
नंद चौधरी,
चंद्रकांत
झा आदि.
ठाकुरबाड़ी
दुलारपुर
दियारा में ही जगरनाथ दास के
नेतृत्व में ठाकुर बड़ी निर्माण
कार्य आरम्भ हुआ.
दो
लाख ईट बनाकर पकाया गया और
भव्य ठाकुरबाड़ी बनाया गया.
1954 में दुलारपुर दियारा में श्री
राम महायज्ञ हुआ था.
गंगा
में कटाव होने पर जब दुलारपुर
ठाकुरबाड़ी गिरने को था तब श्री
जगरनाथ दास जी ने सीताराम जी
की प्रतिमा को उठाकर नारेपुर
ठाकुरबाड़ी में रख दिया.
वे
स्वयं दहिया रसलपुर ठाकुरबाड़ी
में चले गए और वहीँ जाकर पूजा
पाठ करने लगे.
कटाव
के कुछ वर्षों बाद एक ग्रामीण
सोगारथ सिंह और अमरदास बाबा
उर्फ़ तपसी जी दियारा से नाव
पर आ रहे थे.
दोनों
ने नारेपुर से भगवान् जी को
दुलारपुर वापस लाने की योजना
बनाई.
सोगारथ
सिंह ने बेचू चौधरी से छः कट्ठा
जमीन यहाँ गाँव में लिया और
बदले में दियारा में डेढ़ बीघा
जमीन दिया.
बाद
में छः कट्ठा जमीन गीता चौधरी
से ख़रीदा गया.
अभी
ठाकुरबाड़ी परिसर 12
कट्ठा
का है.
ठाकुर
बाड़ी के पास कृषियोग्य लगभग
25 बीघा
अपनी जमीन दियारा में है.
आषाढ़
प्रथम पक्ष द्वितीय को भगवान
को नारेपुर से लाकर प्राण
प्रतिष्ठा किया गया .
श्री
विसुन दास महंथ और अमरदास
सहायक पुजारी बनाये गए.
फिर
मुना दास और फिर नारायण दास
आये.
नारायण
दास के समय ठाकुर बाड़ी पक्की
बनाया गया.
विसुन
देव दास और नारायण दास के समय
श्री शिव महारुद्र यज्ञ हुआ.
1991 में शंकर पोद्दार ने अपने पिता
राम स्वरुप पोद्दार की पावन
स्मृति में एक शिव मंदिर इसी
परिसर में बनवाया.
आदर्श
चौक दुलारपुर पेठिया गाछी
में एक भव्य श्री शिव पार्वती हनुमान मंदिर का निर्माण जन
सहयोग से 1985 में हुआ.
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