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Apr 22, 2013

बहुआयामी प्रतिभा के धनी श्री सच्चिदानंद पाठक



Sri Sachchidanand Pathak
श्री सच्चिदानंद पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आप एक अच्छे शिक्षक, कवि , मंच संचालक, लेखक और लोक गायक हैं। आपकी लेखनी खासकर लोक गीतों में समाज की कुरीतियों पर करारा  प्रहार होता है। पाठक जी को विद्वता विरासत में मिली है। इनके पिता स्व मंगल पाठक ग्राम रघुनन्दन पुर संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। श्री सच्चिदानंद पाठक एक कुशल भजन गायक हैं । इनके भजन कर्णप्रिय होते हैं। आप हिंदी, संस्कृत, मैथिली और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता हैं। इनके कई कैसेट भिन्न भिन्न कंपनी से निकल चुके हैं। इनके कुछ गीत बुढ़ारी में घिडारी, धैलोउन पेटकुनिया काफी लोकप्रिय हुए हैं।

Apr 10, 2013

अधारपुर की कहानी


अधारपुर बेगुसराय जिला के तेघरा प्रखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर अवस्थित गाँव है. दुलारपुर और अधारपुर पहले संयुक्त था लेकिन अब जनसँख्या बढ़ने के कारण यह ताजपुर अधारपुर पंचायत के नाम से जाना जाता है.

बैजनाथ सहाय ( कायस्थ ) अधारपुर मौजे के मालिक हुआ करते थे. किसी कारणवश बैजनाथ सहाय का अधारपुर मौजे नीलम हो गया. नीलामी के बाद अधारपुर मौजे अयोध्या अंग्रेज कोठी के तत्कालीन कोठीवाल के अधीन चला गया. बाद में दुलारपुर मठ के महंथ ने अंग्रेजो से अयोध्या कोठी को खरीद लिया. उसके बाद गंगा कटाव से उत्पन्न पुनर्वास की समस्या आने पर हरिअम्मेय और ढेऊरानी को दुलारपुर मठ के इसी जमीन यानि अधारपुर मौजे में बसाया गया. इनका वास यहाँ १८७९-८७ में गंगा कटाव के उपरांत यहाँ आ गया. इसके पहले इन लोगों का वास महराजी दियारा में था.

हरिअम्मेय रखवारी गाँव अभी भी तिरहुत में विद्यमान है. वहीँ से दो सगे भाई नीम और दामोदर दुलारपुर दियारा आये. उनकी शादी ढेऊरानी के पोती से साथ हुआ. कालांतर में जन नीम और दामोदर दोनों भाई जन अपने गाँव हरिअम्मेय रखवारी गए तो वहां के लोगों ने उन्हें ये कहते हुए फटकारा कि तुमलोग जाती भ्रष्ट हो गए. न जाने कहाँ जाकर किस से शादी करके चले आये. वे लोग पुनः दुलारपुर वापस आ गए. कहा जाता है कि नीम बाबा को एक पुत्र जिनसे अभी पुवारी दफा (अधारपुर ) महाराज सिंह वगैरह हैं. विशुन जी मास्टर भी इसी गैरह के हैं.

उधर दामोदर बाबा के दो पुत्र हुए. जिनके सही नाम की जानकारी अभी नहीं है. दामोदर बाबा के बड़े पुत्र से अभी कामेश्वर सिंह और अन्य हैं तथा छोटे पुत्र से हरदियाल सिंह, हरि लोचन आदि हुए, जिनका वंशनुक्रम उपलब्ध है. हरिलोचन सिंह और रामलोचन सिंह दोनों सगे भाई थे जबकि हरदियाल सिंह उनके चचेरे भाई थे.




Apr 8, 2013

दुलारपुर के आस-पास के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल

परमहंस घाट
वर्तमान के विसौआ घाट शिव मंदिर के निकट आंवला और कटहल के वृक्ष के नीचे बाया नदी के तट पर परमहंस नाम के एक संन्यासी का आगमन हुआ. वे एक सिद्ध पुरुष थे. कहा जाता है कि उन्होंने ध्यानावस्था में ही इसी स्थान पर समाधि ली थी. अभी भी लोग उनकी समाधि पर पुष्प और गंगा जल चढाते हैं. इस घाट का पुनरुद्धार बाबा रामदास ने १९५४ ईस्वी में यहाँ प्रथम श्री विष्णु यज्ञ कराकर किया था. उसके बाद इसी स्थल पर उन्हीं के द्वारा तीन अन्य यज्ञ भी कराये गए थे.

बाबा कृष्णाराम का थान
सरकारी घाट विसौआ के निकट एक विशाल पीपल का वृक्ष था जो बाबा कृष्णाराम थान के नाम से जाना जाता है. उसी के बगल में रामपुर गोपी मौजे में मुस्लमानों का एक कब्रिस्तान भी है.

लक्ष्मण गिरि थान
वर्तमान तीनमुहानी से लगभग २०० गज दक्षिण की दुरी पर एक समाधि स्थल है जहाँ कि कई पिंड नुमा देवता हैं. अभी भी लोग उनपर फूल और गंगा जल चढ़ाते हैं. कहा जाता है कि इसी स्थल पर लक्ष्मण गिरि नाम के एक संन्यासी ध्यानमग्न होकर समाधिस्थ हो गए थे. इस स्थान से कुछ ही दुरी पर रातगाँव महंथ घाट है जो कि महंथ गिरि नाम के संन्यासी का समाधि स्थल है.

मुग़लकालीन बाँध
मुग़लकाल में वर्तमान बाया नदी का निर्माण एक नहर के रूप में किया गया था. नहर की मिट्टी को बाया नदी के पूर्वी ओर जमा कर दिया गया था जो कि एक छोटा -सा बाँध बन गया था. १९४८ के पहले उस मुग़लकालीन बाँध का अवशेष मिलता था परन्तु लघु सिंचाई विभाग द्वारा १९४८ -४९ में बाढ़ से बचाव के लिए उस बाँध पर मिट्टी देने का काम प्रारंभ किया गया जिसे हसनपुर के कुछ प्रभावशाली लोगों ने रुकवा दिया क्योंकि उन लोगों की काफी जमीन नदी के तटीय क्षेत्र में था जिसमे मिट्टी काटने से उन लोगों को भारी नुकसान पहुचता. बाद में जब १९६७ - ६८ के वर्षों में जब संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी तो तत्कालीन सिंचाई मंत्री श्री चन्द्रशेखर सिंह के द्वारा श्रम दान अभियान चलाकर और क्षेत्र के लोगों से सहयोग लेकर बाँध पर मिट्टी दिया गया. एक प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक चन्द्रशेखर सिंह कुदाल से मिट्टी काटकर टोकरी भरते थे और बाबा रामदास अपने माथे पर टोकरी उठाकर बाँध पर मिट्टी डालते थे. इस प्रकार मुग़ल कालीन बाँध का जीर्णोद्धार हुआ.

अजगर वटवृक्ष
यह इस क्षेत्र का एक प्रसिद्द लैंडमार्क है. तत्कालीन दरभंगा महाराज के विशाल मौजे बिनलपुर में गुप्ता बाँध के किनारे बाया नदी से सटे जिसे अभी ताजपुर घाट के नाम से जाना जाता -एक विशाल वट वृक्ष था. जिसका अवशेष अभी भी वर्तमान है. कुछ लोगों का कहना है कि इस पर एक विशाल अजगर सांप रहता था. लोग गलती से भी इधर से नहीं गुजरते थे. यह इस क्षेत्र का एक चर्चित जगह है

 
अपडेट : दिनांक 11 सितंबर 2022 को सैकड़ों वर्ष पुराना वटवृक्ष धराशायी हो गया । इसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आए। आस पास के प्रबुद्ध जनों से निवेदन है कि इसके स्थान पर पुनः एक बरगद का पेड़ लगा दिया जाय ताकि इस स्थान की प्राचीनता औए एतिहासिकता बनी रहे। 

कुछ चित्र: 




Apr 4, 2013

चकवार का इतिहास

चकवार से संबंधित अनुसन्धान करते समय पटना विश्वविद्यालय  के प्रोफेसर के. के. दत्ता द्वारा लिखित पुस्तक पढने का मौका मिला. प्रोफेसर के. के. दत्ता पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एक प्रख्यात इतिहासकार थे. उनके पुस्तक के कुछ पेज यहाँ दिए जा रहे हैं.



















Apr 3, 2013

चकवार के इतिहास से संबंधित दस्तावेज

दुलारपुर में ज्यादातर लोग भरद्वाज गोत्र के हैं जिनके पूर्वज चिरायु और चिन्मय मिश्र बैलौचे सुदे डीह से यहाँ बेगुसराय  जिले के चाक और दुलारपुर आये थे. उसी से संबंधित कुछ दस्तावेज यहाँ दिए जा रहे हैं.