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Sep 2, 2015

तेघड़ा का भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मेला ऐतिहासिक


तेघड़ा ( बेगूसराय) का भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मेला ऐतिहासिक है। देश भर में दूसरा सबसे बड़ा मेला का आयोजन यहां किया जाता है। इस मेले का भी गौरवमयी इतिहास रहा है। तेघड़ा में मेले का आयोजन प्रत्येक वर्ष धूमधाम से होता है। मेला तीन दिनों तक चलता है। इसमें आसपास के क्षेत्रों से हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। 

भयंकर महामारी की चपेट में था तेघड़ा : वर्ष 1927 में तेघड़ा में प्लेग की बीमारी भयंकर महामारी के रूप ले ली थी। सैकड़ों की संख्या में लोग प्लेग से मारे गय थे। महामारी के कारण तेघड़ावासी बाजार छोड़ कर गांवों में जाकर बसना शुरू कर दिया था। कई लोग तेघड़ा छोड़कर दूसरे शहरों एवं राज्यों में जाकर बस गए थे। 
  • प्लेग की महामारी में मारे गये थे सैकड़ों लोग 
  • श्रीकृष्ण की आस्था और भक्ति से मिला था निजात 
  • अभी दस किलोमीटर परिक्षेत्र में 14 मंडपों में मेला का आयोजन
महामारी से बचने के लिए किया था यज्ञ अनुष्ठान : प्लेग की इस भयंकर महामारी से बचने के लिए लोगों ने काफी उपाय किए। बड़े-बड़े यज्ञ और अनुष्ठान किया। नामी वैद्यों को बुलाया गया। लोग परेशान होकर भगवान की पूजा करने लगे थे।
1928 में पहली बार मनाया गया जन्मोत्सव: चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन मंडली की सलाह पर सर्वप्रथम 1928 में स्टेशन रोड में शिवमंदिर के समीप स्व.वंशी पोद्दार, विशेश्वर लाल, लखन साह के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। तत्पश्चात कुछ ही दिनों के बाद प्लेग से लोगों को छुटकारा मिल गया था। तब से तेघड़ावासियों की आस्था भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ गई। 1929 में स्व. सूर्यनारायण पोद्दार हाकिम, नुनु पोद्दार, हरिलाल सहित अन्य के नेतृत्व में मेन रोड में मुख्य मंडप में भी मनाया जाने लगा। यह सिलसिला करीब दशकों चला। 


श्री चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली ने दी थी सलाह : 28 फरवरी 1928 को भारत भ्रमण के दौरान चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली तेघड़ा पहुंची। कीर्तन मंडली तेघड़ा में रात में रुकी थी। इसी दौरान तेघड़ा बाजार के प्रबुद्ध लोगों ने कीर्तन मंडली के संतों से मिलकर प्लेग से निजात पाने के उपाय पूछा था। तब मंडली के एक संत ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने की सलाह दी थी। 
वक्त के साथ कारवां भी बढ़ता चला गया : समय के साथ तेघड़ा में भगवान श्रीकृष्ण में लोगों की आस्था बढ़ने लगी। साथ ही मेले के स्वरूप में मंडपों की संख्या भी बढ़ती गई। कलांतर में स्व. लखी साह, स्व. रामेश्वर साह, हरिलाल मखाड़िया के नेतृत्व में धूमधाम से मेला का आयोजन किया जाने लगा।


साभार : दैनिक जागरण

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