जयंती ग्राम
दुलारपुर
गाँव के दियारा क्षेत्र के
सीमा से जुड़े ग्राम पंडारक
और मेकरा से समय समय पर सीमा
अतिक्रमण का कार्य होता रहता
था. इसी
के परिपेक्ष्य में सीमान को
सुरक्षित रखने के लिए तहबल
दुसाध के नेतृत्व में दुलारपुर
मेकरा सीमान पर पासवान टोला
बसाया गया था; उस
समय दुलारपुर - आधारपुर
का वास स्थान दियारा ही था.
दुसाध जाति
के लोग लड़ाका और जुझाडू लोग
होते हैं. सीमान
पर लड़ाई में इनकी महत्वपूर्ण
भूमिका होती थी. दुसाध
जाति में शौखी पासवान और बुधन
पासवान दो भाई थे. दोनों
बौने थे. शौखी
दुसाध अच्छे मृदंगिया थे.
जब गाँव में
नाग पंचमी के दिन बिष हर माता
की पूजा और शैलेश बाबा की पूजा
( शैलेश
बाबा दुसाध के देवता हैं)
होती थी तो
भगत राम स्वरुप दास भगतै करते
थे तथा शौखी मृदंग बजाते थे.
बुधन पासवान
छोटा भाई था. उनके
दो पुत्र हुए - रामेश्वर
पासवान और रामदेव पासवान.
कहा जाता है
कि दुलारपुर में सबसे पहला
मैट्रिक पास रामेश्वर पासवान
ही थे. बाद
में उन्हें मोकामा घाट में
रेलवे में नौकरी मिल गयी.
रामदेव पासवान
को पानी वाले जहाज में सारंग
(ड्राईवर)
लकी नौकरी
मिली. अभी
इन लोगों का परिवार बरौनी
जंक्शन के पूर्वी गुमटी के
निकट राजवाड़ा गाँव में बसा
है.
दुलारपुर
के ही राम रूप दास और जानकी
दास काफी सूझ बुझ वाले व्यक्ति
हुए. जिनका
वंशज अभी भी जयंती ग्राम में
बसा हुआ है. जयंती
ग्राम की स्थापना 2 अक्टूबर
१९६९ को गांधीजी के जन्म दिन
के 100 साल
पूरे होने के अवसर पर किया गया
था. दुलारपुर
के लोगों को गंगा में कटाव के
चलते छिन्न भिन्न होकर कई
जगहों पर जाकर बसना पड़ा.
दुसाध लोगों
को भी काफी कष्ट सहने पड़े.
वे दादुपुर,
भगवानपुर,
शिबुटोल,
गोधना,
दरगहपुर,
आजादनगर(बछवाड़ा),
पिढोली चक्की
तथा न जाने कहाँ कहाँ जाकर
बसे. बहुत
सा परिवार ससुराल और ननिहाल
में जाकर बस गया.
जयंती ग्राम दुलारपुर
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