अधारपुर
बेगुसराय जिला के तेघरा प्रखंड
में राष्ट्रीय राजमार्ग 28
पर अवस्थित
गाँव है. दुलारपुर
और अधारपुर पहले संयुक्त था
लेकिन अब जनसँख्या बढ़ने के
कारण यह ताजपुर अधारपुर पंचायत
के नाम से जाना जाता है.
बैजनाथ
सहाय ( कायस्थ
) अधारपुर
मौजे के मालिक हुआ करते थे.
किसी कारणवश
बैजनाथ सहाय का अधारपुर मौजे
नीलम हो गया. नीलामी
के बाद अधारपुर मौजे अयोध्या
अंग्रेज कोठी के तत्कालीन
कोठीवाल के अधीन चला गया.
बाद में दुलारपुर
मठ के महंथ ने अंग्रेजो से
अयोध्या कोठी को खरीद लिया.
उसके बाद गंगा
कटाव से उत्पन्न पुनर्वास की
समस्या आने पर हरिअम्मेय और
ढेऊरानी को दुलारपुर मठ के
इसी जमीन यानि अधारपुर मौजे
में बसाया गया. इनका
वास यहाँ १८७९-८७
में गंगा कटाव के उपरांत यहाँ
आ गया. इसके
पहले इन लोगों का वास महराजी
दियारा में था.
हरिअम्मेय
रखवारी गाँव अभी भी तिरहुत
में विद्यमान है. वहीँ
से दो सगे भाई नीम और दामोदर
दुलारपुर दियारा आये.
उनकी शादी
ढेऊरानी के पोती से साथ हुआ.
कालांतर में
जन नीम और दामोदर दोनों भाई
जन अपने गाँव हरिअम्मेय रखवारी
गए तो वहां के लोगों ने उन्हें
ये कहते हुए फटकारा कि तुमलोग
जाती भ्रष्ट हो गए. न
जाने कहाँ जाकर किस से शादी
करके चले आये. वे
लोग पुनः दुलारपुर वापस आ गए.
कहा जाता है
कि नीम बाबा को एक पुत्र जिनसे
अभी पुवारी दफा (अधारपुर
) महाराज
सिंह वगैरह हैं. विशुन
जी मास्टर भी इसी गैरह के हैं.
उधर
दामोदर बाबा के दो पुत्र हुए.
जिनके सही नाम
की जानकारी अभी नहीं है.
दामोदर बाबा
के बड़े पुत्र से अभी कामेश्वर
सिंह और अन्य हैं तथा छोटे
पुत्र से हरदियाल सिंह,
हरि लोचन आदि
हुए, जिनका
वंशनुक्रम उपलब्ध है.
हरिलोचन सिंह
और रामलोचन सिंह दोनों सगे
भाई थे जबकि हरदियाल सिंह उनके
चचेरे भाई थे.
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