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Jan 21, 2012

दुलारपुर दर्शन - 3 (नामकरण चौहद्दी एवं विस्तार)


प्रलय में बचे मनु शतरूपा से या महाभारत के युद्ध  में कौरव और पाण्डव की सेना के बचे लोगों से, या फिर  डार्विन के विकासवादी सिद्धांत  के अनुसार एककोशीय प्राणी से बहुकोशीय प्राणी फिर  बंदर... मनुष्य। किस प्रकार मनुष्य की उत्पत्ति हुई ? इस परिचर्चा  में हमें नहीं पड़ना है। वर्तमान में भी भूत के अवशेष पुरातत्वविद् प्राप्त कर रहे हैं, विकास की तरह-तरह की क्रमिक पद्धतियों  का ज्ञान हो रहा है।

कहा जाता है- शायद तेरहवीं शताब्दी का पूर्व पाद था।  भाग्य लक्ष्मी हिंदुओं  से रूठकर यवनों के गले में जयमाला पहना चुकी थी। अर्थात  हिन्दुओं के अंतिम सम्राट पृथ्वीराज पर मुहम्मद गोरी विजय पा चुका था। गौरवमयी दिल्ली का पुण्य-स्थल यवनों का क्रीडा  स्थल बन चुका था। उस समय दिल्ली के राज सिंहासन पर मुहम्मद गोरी का एक दास क़ुतुबुद्दीन  ऐबक  विराजमान था। 

दुलारपुर गाँव की प्राचीन भौगोलिक सीमा 


उसी समय पण्डारक से लेकर वर्तमान के राष्ट्रीय राजपथ-28 के करीब तक, सेउनार मंदिर से लेकर रूपसबाज, मउ बाजार (फलाशीशी कोठी ) के बीच लगभग 32000 बीघा जमीन के मालिक दुलारचन्द राय हुआ करते थे। वे इस  क्षेत्र के जमींदार  ही नहीं प्रधान  भी थे। अतः उनका प्रभाव एवं दबदबा था। उनकी अपनी रैयत  थी। उसी समय माधुरी  नाम की एक काफी  समृद्ध  महिला भी थी। जनश्रुति  है कि वर्तमान का मधुरापुर  गांव माधुरी के नाम पर ही बना है। दुलार राय काफी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ऐसे भी पुराने लोग धर्म  के प्रति काफी आस्थावान होते थे ।

जैसा कि हम लोग जानते हैं  कि उत्तरी मिथिलांचल यथा तिरहुत निवासी आध्यामिक धार्मिक  व्यक्ति होते हैं। विद्यापति (1368-1475 ) के बाद से इस क्षेत्र के लोगों में गंगा तट की सेवा की भावना काफी  विकसित हुई है। इस क्षेत्र के विद्वान अपनी विद्वता के लिए प्रख्यात रहे  हैं। ऐबक के शासन के बावजूद मिथिला की पवित्र भूमि अक्षुण्ण बनी हुई थी। इसके पूर्व में  बंग, पश्चिम में  अवध, उत्तर में नागराज हिमालय और दक्षिण में पुण्य सलिला  गंगा सुशोभित  थी। उसी समय इस मिथिला की पवित्र भूमि पर (वर्तमान दरभंगा जिले के बहेड़ा थानान्तर्गत) सुसारी नामक एक  गांव है। इस सुसारी गाँव में पंडित  चिरायु मिश्र (चिड़ाय मिश्र ), पंडित  चिन्मय मिश्र  (चुनमुन्नी मिश्र ) एवं पंडित मानसी मिश्र तीन भाई रहा करते थे। तीनों भाई प्रकाण्ड विद्वान थे। मिथिला प्रांत में तीनों भाई की तूती बोलती थी। ये बेलौंचे-शुदै मूल और भारद्वाज गोत्र के मैथिल ब्राह्मण थे।

सूर्य ग्रहण  का पुण्यमय अवसर आनेवाला था। अतः तीनों भाइयों की इच्छा गंगा स्नान करने की हुई । अतः उन्होंने अपनी भार्या, इष्ट -मित्रों और अनुचारों के साथ गंगा की ओर यात्रा की। सर्वप्रथम तीनों  भाई दुलार राय के निवास स्थान (जो कि गंगा तट के करीब था ) पर गये और वहीं कुछ दिनों तक ठहरे। कालान्तर में पंडित चिरायु मिश्र और पंडित मानसी मिश्र वहाँ से अलग चले गये। पंडित चिरायु मिश्र चाक-साम्हो क्षेत्र में गये और पंडित मानसी मिश्र गहरामपुर चले गये। पंडित चिन्मय मिश्र दुलार राय के यहाँ ही रूक गये। कहा जाता है कि चिरायु मिश्र से चकवार (बारह गाँव ) तथा मानसी मिश्र से गया के समीप गहरामपुर एवं अन्य छः गांव का उद्भव एवं विकास हुआ।

चिन्मय मिश्र दुलार राय के निवास पर ही रहकर गंगा की सेवा करते थे तथा गंगा-स्नान करने आये श्रद्धालुओं को रामायण, गीता, पुराण आदि की कथा सुनाते थे, कर्म पद्धति बतलाते थे। वे बेहद ही शांत, धार्मिक  प्रवृत्ति के संत  थे। वे कार्तिक स्नान के पश्चात पुनः तिरहुत वापस जाने की सोचने लगे। इन्हीं दिनों दुलार राय को पंडित चिन्मय मिश्र से काफी  लगाव हो गया। जब उन्होंने अपने वापस जाने की बात कही तो दुलार राय काफी भाव विह्वल हो गये। वे बोले - हे संत! आप हमें छोड़कर मत जाइये। आप यहीं रहे। भगवान ने मुझे कोई संतान नहीं दी है। आप ही आज में मेरी संपत्ति  के स्वामी हैं। उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति अपने जीते-जी पंडित चिन्मय  मिश्र के नाम कर दी थी। जब दुलार राय मरनासन्न हो गये तो उन्होंने चिन्मय मिश्र को बुलाकर कहा- मैं तो अब जा रहा हूँ। प्रभु का बुलावा आ गया है। आप हमें भूलियेगा नहीं। इसके  बाद उनके  प्राण पखेरु  उड़ गये।

दुलारपुर नाम कैसे पड़ा?


कुछ वर्षों बाद  पंडित चिन्मय मिश्र (अपभ्रंशित नाम पंडित चुनमुन्नी   मिश्र ) ने अपने गाँव का नाम दुलार राय की पावन स्मृति में दुलारपुर रखा। वर्तमान समय में यह गाँव  पश्चिम में गंगा नदी से  तथा उसका यह भाग पटना जिला के सटा हुआ है। पश्चिमोत्तर दुलारपुर दियारा का कुछ भूभाग वैशाली जिला को भी छूता है। दियारा का उत्तरी सिरा चमथा में जाकर मिलता है, जो कि समस्तीपुर जिला में अवस्थित है। इस प्रकार दुलारपुर चार जिला में अवस्थित माना जा सकता है  ऐसे दुलारपुर गाँव के पूरब में रघुनन्दनपुर एवं तेघड़ा रेलवे स्टेशन, पश्चिम में मेकरा (पटना), उत्तर में पिढौली तथा दक्षिण में अयोध्या, हसनपुर एवं तेघड़ा बाजार है। इसका क्षेत्रीय  विस्तार काफी  फैला  है। इसकी गणना जिला के एक बड़े गांव में की जाती है। दुलारपुर गाँव पिढौली, नवादा, रघुनन्दनपुर, आधारपुर-ताजपुर एवं (नयानगर ) दुलारपुर- रातगाँव, पंचायत में पड़ता है।

दुलारपुर दियारा में दुलारपुर चित्रनारायण, महमदपुर फत्ता, रामपुर गोपी, चगाजी, समसीपुर, रतुलहपुर, कोरटपट्टी, दरियापुर आदि मौजे हैं, जहाँ कि दुलारपुर के लोग कृषि कार्य करने जाते है। इमादपुर परगना में अवस्थित यह क्षेत्र चार थानों की निगरानी में है। तेघड़ा, बछवाड़ा, भगवानपुर  एवं मेकरा  (पटना )

१. रातगाँव -115  - 281 -मिर्जापुर  भीम (79 )
2. नयानगर-123  -328 - नयानगर (123)
3. आधारपुर- 127 -319 - सिकन्दरपुर (114)

दुलारपुर के लोग अपने ग्राम देवता  बाबा ज्ञानमोहन  की पूजा करते हुए. 
चित्र साभार : प्रशांत कुमार विक्की 



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