इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोबाइल फ़ोन या टेबलेट जैसे आधुनिक यन्त्र हमारी जरुरत बन गए हैं. लेकिन कही ये हमारे रिश्तों को खतम तो नहीं कर रहे हैं.
मैं अपने एक जाननेवाले के यहाँ गयी. वहां तीन लोग थे. तीनों ने आपस में इशारों से हाय हेलो किया और फिर लग गए अपने अपने मोबाइल फ़ोन में. कोई 15 -20 मिनट तक शायद ही किसी से किसी से बात की हो. मैं तो आश्चर्य में थी. यह हो क्या रहा है? आखिर ये लोग मोबाइल से चिपके क्यों हैं?
दूसरी बार एक रेस्टोरेंट में गयी. मेरे सामने वाली टेबल पर एक पति पत्नी बैठे थे. बेटर आया और उन लोगों से आर्डर ले गया. आर्डर ले जाने से खाना लाने तक का समय कैसा बिताया उन दोनों ने. पति अपने टेबलेट पर गेम खेलते रहे और पत्नी अपने फ़ोन से किसी से बात में लगी रही. यह देखकर बहुत ही अजीब लगा कि आखिर मोबाइल फ़ोन और आधुनिक उपकरणों ने हमसे आपस में बात करना तक छीन लिया है.
आपने भी बहुत सारे ऐसे अवसर देखें होंगे जहाँ लोग मोबाइल में लगे रहते हैं. आखिर इससे हमारे रिश्ते भी तो प्रभावित होते हैं. कई बार आपस में बात करने से लोगों का तनाव दूर होता है. हम एक दूसरे को समझते हैं और उनके साथ हमारा सरोकार होता है.
लेकिन आज के इस मोबाइल प्रधान समाज में लोगों के पास गेम खेलने का तो वक़्त है लेकिन अपने आस पड़ोस के लोगों के साथ,या बच्चों के साथ, परिवार के साथ बात करने का समय नहीं होता. इस पर आप भी विचार करें. हमारे कार्यों का हर प्रतिबिम्ब आपको दीख जाएगा.
जीवन में साम्य होना बहुत जरुरी है. गैजेट्स का गुलाम बनना दुनिया के सबसे विकसित प्राणी को शोभा नहीं देता. इस post को पढने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
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