कहा गया है बचपन हर गम से बेगाना होता है. बच्चे मन के सच्चे होते हैं. लेकिन क्या आपको पता है बच्चों का पालन पोषण किस तरह से किया जाना चाहिए. अंग्रेजी का एक शब्द है – Buddy Parenting. आखिर ये buddy parenting क्या है? बच्चों को अपना दोस्त मानकर जब उसका पालन पोषण किया जाता है तो उसे buddy यानि मित्रवत माना जाता है.
जब बच्चे यह जान जाते हैं कि मेरे माता –पिता मुझसे मित्रवत व्यवहार करते हैं तो वह पूरी तरह से खुल जाते हैं और उनका बचपन पूरी तरह से खिल जाता है. हमारे सामने बहुत ऐसे ख़ुशी के पल आते हैं जो हमें अपने बच्चे देते हैं. ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को छोटा और अवोध समझकर उनकी तरफ ध्यान नहीं देते हैं. मैं यहाँ एक दो किस्से का जिक्र करना चाहूँगा जहाँ मैंने अपने बच्चों से सीखा है. आजकल के बच्चे electronic गैजेट्स को use करने माहिर हैं. खासकर मोबाइल को हैंडल करने में. जब मुझे मोबाइल का function समझने में दिक्कत आती है तो मेरा बेटा झट से उसे कर देता है.
सवाल यह उठता है कि बच्चे कब पूरी तरह से खुल जाते हैं? जब उन्हें लगता है कि उनकी बात को अच्छी तरह से सुना जा रहा है. इसके लिए माता पिता को एक अच्छा listener बनना पड़ता है. यदि आप अपने बच्चे का नैसर्गिक विकास चाहते हैं तो बच्चों के क्रिएटिविटी को nourish करना होगा. अपने बच्चों पर अपने आदेश मत थोपिए. उन्हें समझने कोशिश कीजिये. उनके साथ अपनी बातों को शेयर कीजिये. जब मैं कभी बीमार होती हूँ मेरे बच्चे मेरी न सिर्फ देखभाल करते हैं बल्कि वे वह सब करते हैं जो हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. एक बार मैं बीमार थी, तीन चार दिन हो गए थे. काफी कमजोरी हो गयी थी. डॉक्टर ने कहा – अगर हीमोग्लोबिन काम हो जायेगा तो ब्लड भी चढ़ाना पर सकता है. बच्चों ने यह बात सुन ली. मेरा बेटा जो दस साल का है, डॉक्टर के पास जाकर बोला डॉक्टर अंकल. आप मेरे ब्लड मम्मी को चढ़ा दीजिये. मैंने टीवी में देखा है कि बेटा का खून मम्मी के खून से मिल जाता है. हम लोग उसकी इन बातों को सुन हैरान हो गए. डॉक्टर ने कहा – नहीं बेटे! आपकी मम्मी को आपके खून की जरुरत नहीं पड़ेगी. वे दवाई से ही ठीक हो जायेंगी. इस तरह के कई ऐसे उदहारण आते हैं जहाँ बच्चे बड़ों से भी आगे निकल जाते हैं. बचपन में बच्चों की तोतली बातें मन को मुग्ध कर देती हैं. आज सूर्य वंशम वाले रोबदार पिता की कोई जरुरत नहीं है जिसे देखकर बच्चों के मुंह से जवान गायब हो जाए. ऐसे भी कहा गया है कि बच्चों को पांच साल तक लाड़ प्यार देना चाहिए, दस साल तक विशेष देखभाल करनी चाहिए और जैसे ही बच्चे सोलह साल के हो जाएँ उनको मित्रवत देखना चाहिए. ख़ुशी के पल तभी आयेंगे, जब खुल जायेगा बचपन, बचपन तभी खुल पायेगा, जब बच्चो के साथ होगा मित्रवत आचरण.
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जब बच्चे यह जान जाते हैं कि मेरे माता –पिता मुझसे मित्रवत व्यवहार करते हैं तो वह पूरी तरह से खुल जाते हैं और उनका बचपन पूरी तरह से खिल जाता है. हमारे सामने बहुत ऐसे ख़ुशी के पल आते हैं जो हमें अपने बच्चे देते हैं. ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को छोटा और अवोध समझकर उनकी तरफ ध्यान नहीं देते हैं. मैं यहाँ एक दो किस्से का जिक्र करना चाहूँगा जहाँ मैंने अपने बच्चों से सीखा है. आजकल के बच्चे electronic गैजेट्स को use करने माहिर हैं. खासकर मोबाइल को हैंडल करने में. जब मुझे मोबाइल का function समझने में दिक्कत आती है तो मेरा बेटा झट से उसे कर देता है.
सवाल यह उठता है कि बच्चे कब पूरी तरह से खुल जाते हैं? जब उन्हें लगता है कि उनकी बात को अच्छी तरह से सुना जा रहा है. इसके लिए माता पिता को एक अच्छा listener बनना पड़ता है. यदि आप अपने बच्चे का नैसर्गिक विकास चाहते हैं तो बच्चों के क्रिएटिविटी को nourish करना होगा. अपने बच्चों पर अपने आदेश मत थोपिए. उन्हें समझने कोशिश कीजिये. उनके साथ अपनी बातों को शेयर कीजिये. जब मैं कभी बीमार होती हूँ मेरे बच्चे मेरी न सिर्फ देखभाल करते हैं बल्कि वे वह सब करते हैं जो हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. एक बार मैं बीमार थी, तीन चार दिन हो गए थे. काफी कमजोरी हो गयी थी. डॉक्टर ने कहा – अगर हीमोग्लोबिन काम हो जायेगा तो ब्लड भी चढ़ाना पर सकता है. बच्चों ने यह बात सुन ली. मेरा बेटा जो दस साल का है, डॉक्टर के पास जाकर बोला डॉक्टर अंकल. आप मेरे ब्लड मम्मी को चढ़ा दीजिये. मैंने टीवी में देखा है कि बेटा का खून मम्मी के खून से मिल जाता है. हम लोग उसकी इन बातों को सुन हैरान हो गए. डॉक्टर ने कहा – नहीं बेटे! आपकी मम्मी को आपके खून की जरुरत नहीं पड़ेगी. वे दवाई से ही ठीक हो जायेंगी. इस तरह के कई ऐसे उदहारण आते हैं जहाँ बच्चे बड़ों से भी आगे निकल जाते हैं. बचपन में बच्चों की तोतली बातें मन को मुग्ध कर देती हैं. आज सूर्य वंशम वाले रोबदार पिता की कोई जरुरत नहीं है जिसे देखकर बच्चों के मुंह से जवान गायब हो जाए. ऐसे भी कहा गया है कि बच्चों को पांच साल तक लाड़ प्यार देना चाहिए, दस साल तक विशेष देखभाल करनी चाहिए और जैसे ही बच्चे सोलह साल के हो जाएँ उनको मित्रवत देखना चाहिए. ख़ुशी के पल तभी आयेंगे, जब खुल जायेगा बचपन, बचपन तभी खुल पायेगा, जब बच्चो के साथ होगा मित्रवत आचरण.
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